मिजोरम भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों का एक प्रमुख हिस्सा है। मिजोरम अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। मिजोरम के इसी खूबसूरती का बखान करते हुए आज हम आपको इस राज्य में मनाए जाने वाले प्रमुख परम्परागत त्योहारों से रूबरू करवाएंगे।
चपचार कूट त्योहार (Chapchar Kut Festival):
मिजोरम राज्य में वैसे तो अनेक त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाये जाते हैं लेकिन उनमे से चपचार कूट त्योहार बहुत ही प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है। चपचार कूट त्योहार ऐसे समय पर मनाया जाता है जब पुराने फसल कट गए होते हैं तथा नए फसल लगाने की तैयारी चल रही होती है।
यह जनजातीय समूह द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है। इस त्योहार का समारोह पुरे मिजोरम राज्य के साथ-साथ यहाँ की राजधानी आइज़ोल में भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। आइज़ोल में मिजोरम के साथ-साथ पुरे देश-दुनिया से लोग इकठ्ठा होते हैं। मिजोरम में बड़े पैमाने पर झूम खेती की जाती है अर्थात इस समय यहाँ के किसान बाँसों को काट कर उसके ठूंठ को जलाते हैं तथा उसके उपरांत खाली हुए जमीं पर खेती करते हैं।
चपचार त्योहार के दिन सभी महिलायें, पुरुष, बच्चे इत्यादि रंग-बिरंगे परंपरागत वस्त्र धारण करते हैं। इस दिन यहाँ के लोगों द्वारा चेराव (Cheraw) नामक नृत्य किया जाता है। चेराव के साथ-साथ चेहलाम, सोलोकिया नामक अन्य नृत्य भी जनजातीय समूह द्वारा किये जाते हैं। चपचार कूट त्योहार मिजोरम का एक अत्यंत लोकप्रिय त्योहार है।
एंथोरियम त्योहार (Anthurium Festival):
यह भी मिजोरम राज्य का एक प्रमुख त्योहार है। हालाँकि यह मिजोरम का कोई परम्परागत त्योहार नहीं है। एंथोरियम त्योहार, एंथोरियम नामक फूल के उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मिजोरम के पर्यटन विभाग द्वारा वर्ष 2006 से मनाया जाता है। यह त्योहार मिजोरम राज्य की राजधानी आइज़ोल से एक लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित रीइक (Reiek) में मनाया जाता है।
चूंकि यह क्षेत्र एंथोरियम फूल के उत्पादन के लिए अनुकूल है तथा यहाँ की महिलाएं इस फूल के उत्पादन में अहम् योगदान निभाती है इसलिए उन्हें प्रेरित करने हेतु प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्टूबर माह में एंथोरियम त्योहार यहाँ मनाया जाता है।
पहले यहाँ पर बहुत अधिक मात्रा में एंथोरियम फूल नहीं खिलते थे लेकिन यहाँ के पर्यटन विभाग के प्रयासों के फलस्वरूप रीइक आज पुरे भारत में एंथोरियम फूलों के उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। इस दिन विभिन्न सांस्कृतिक नृत्य, गाना, खेलों का आयोजन भी किया जाता है।
पॉल कुट त्योहार (Pawl Kut Festival):
यह त्योहार मिजोरम राज्य के प्रमुख त्योहारों में से एक है। वैसे तो मिजोरम राज्य के लगभग सभी त्योहार या तो फसलों के बुवाई के फलस्वरूप मनाए जाते हैं या तो फसलों के कटने के उपरांत। ठीक उसी प्रकार इस त्योहार का भी सम्बन्ध फसलों से ही है लेकिन मिजोरम राज्य के लोग इस त्योहार से भावनात्मक रूप से जुड़े है।
दरअसल 18वीं शताब्दी में मिजोरम राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। यह अकाल लगातार 3 वर्षों तक चला जिससे यहाँ के लोगों की स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई और लोग दाने-दाने को तरस गए। अपनी ख़राब स्थिति से उबरने के लिए लोगों ने अपने इष्टदेव का आह्वान करना शुरू कर दिया ताकि राज्य में अच्छी बारिश हो सके और उन्हें इस अकाल से मुक्ति मिले। 3 वर्षों के अकाल के उपरांत आखिरकार चौथे वर्ष राज्य में भारी बारिश हुई और लोगों को उम्मीद से ज्यादा फसल की पैदावार मिली।
3 वर्ष बाद प्राप्त हुए अच्छे फसल का पहला हिस्सा लोगों ने अपने इष्टदेव को चढ़ाया तथा उसी साल से प्रत्येक वर्ष के दिसंबर माह में पुरे राज्य में पॉल कुट त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार में लोग अन्य त्योहारों की भांति ही पकवान बनाते है, पारम्परिक पोशाक पहनते है, पारम्परिक नृत्य करते हैं, गीत गाते हैं इत्यादि।
खुआडो कुट त्योहार (Khuado Kut Festival):
यह त्योहार भी मिजोरम राज्य का प्रमुख त्योहार है। खुआडो कुट त्योहार मुख्यतः मिजोरम के पेट (Paite) समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है। मिजोरम राज्य में मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों के समान यह त्योहार भी फसल प्राप्ति के उपरांत अपने इष्टदेव को धन्यवाद् देने के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है
खुआडो कुट त्योहार से पहले समुदाय के सभी लोग देवदार के पेड़ के छाल निकालकर अपने-अपने घर ले जाते हैं जिसे परंपरा के अनुसार खुआडो कुट त्योहार की रात को जलाया जाता है। लोगों का मत है कि देवदार पेड़ के छाल को जलाने से उनके घर से बुरी आत्मा भाग जाती है।
इस त्योहार में अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। परंपरा के अनुसार इस त्योहार के दिन अधिक से अधिक शोर मचाया जाता है ताकि घर की बुरी आत्मा घर से भाग जाए। शोर मचाने के लिए लोग ड्रम, ताशे, ढोल तथा अन्य वाद्ययंत्रों का प्रयोग भी करते हैं।
थालफावांग कुट त्योहार (Thalfavang Kut Festival):
मिजोरम राज्य में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जिनमे यह त्योहार प्रमुख है। थालफावांग कुट त्योहार मिजोरम राज्य के मिज़ो समुदाय द्वारा पुरे राज्य में मनाया जाता है। मिजोरम राज्य के सभी प्रमुख त्योहारों का आधार फसल प्राप्ति अथवा फसल की बुवाई है। ठीक उसी प्रकार थालफावांग कुट त्योहार भी फसल बुवाई के उपरांत मनाया जाने वाला त्योहार है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष नवंबर माह में मनाया जाता है।
थालफावांग कुट त्योहार में पारम्परिक पकवान बनाए जाते हैं, लोग पारम्परिक परिधान पहनते हैं। इस त्योहार के द्वारा मिजोरम पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मिजोरम राज्य के जनजातीय समूहों द्वारा हस्तनिर्मित विभिन्न प्रकार के हथियार, ज्वेलरी, फ्लावर केस इत्यादि की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है।
मीम कुट त्योहार (Mim Kut Festival):
मीम कुट त्योहार भी मिजोरम राज्य के सभी त्योहारों में प्रमुख स्थान रखता है। वैसे तो मिजोरम राज्य के सभी त्योहारों का सम्बन्ध फसल से है लेकिन मीम कुट त्योहार का सम्बन्ध फसल के साथ-साथ अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने से भी है। मीम कुट त्योहार में लोगों द्वारा पारम्परिक पकवान बनाए जाते हैं तथा सबसे पहले अपने पूर्वजों को भेंट किये जाते हैं।
यह त्योहार मिजोरम के साथ-साथ नागालैंड, म्यांमार इत्यादि में भी मनाया जाता है। मीम कुट त्योहार में मुख्यतः मक्के से बने पकवानों को खाया जाता है। इस दिन अपने पूर्वजों की आत्मा को खुश करने के लिए चावल से बियर बनाये जाते हैं तथा लोग अपने पूर्वजों को समर्पित करते हैं।