इस दुनिया की वर्षों से यह रीति रही है कि जिसके पास अधिक ताकत और धन रहा है उसने अपने से कम ताकतवर और वंचित लोगों पर राज किया है। यह प्रथा वर्तमान युग में भी काफी प्रचलित है। हालाँकि यदि हम अपने देश के इतिहास की तरफ झाँकने का प्रयास करें तो हमे ऐसे हजारों उदाहरण मिल जाएंगे जब अमीर सामंतों, राजाओं, जमींदारों, साहूकारों ने देश के दबे-कुचले वर्ग पर अपने हिसाब से राज किया है।
इन्ही उदाहरणों में कुछ ऐसी कहानियां भी मिल जाती हैं जब इसी दबे-कुचले वर्ग से कोई हिम्मती व्यक्ति अपना सीना ताने खड़ा हो गया हो और इन अमीर सामंतों, राजाओं, जमींदारों और साहूकारों को उनकी औकात याद दिला दी हो। आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसे ही एक वीर योद्धा के बारे में जिसने हैदराबाद के निजाम के कुशासन के खिलाफ विद्रोह कर उसके रातों की नींद हराम कर दी थी।
कोमाराम भीम:
आज हम बात करने जा रहे हैं कोमाराम भीम के जीवन चरित्र के बारे में जो दुनिया के किसी भी दूसरे वीर योद्धा से कम नहीं है। कोमाराम भीम का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश भारत के हैदराबाद स्टेट के आदिलाबाद जिले के नजदीक सांकेपल्ली नामक स्थान पर एक आदिवासी गोंड समुदाय में वर्ष 1900 या 1901 में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय हुआ था जब जंगलों पर सरकारी वन अधिकारियों का राज चल रहा था और वे सभी अपने स्वार्थ हेतु जंगलों को कटवा रहे थे।
कोमाराम का प्रारंभिक जीवन:
चूंकि कोमाराम का जन्म एक आदिवासी समुदाय में हुआ था अतः उनके पिता सहित समुदाय के अन्य लोग जंगलों से प्राप्त होने वाले उत्पादों के साथ-साथ खेती-किसानी से प्राप्त फसलों को खा-पीकर अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे। इसी बीच इन क्षेत्रों को वहां के सरकार द्वारा जमींदारों के अधीन बाँट दिया गया ताकि जमींदार इन क्षेत्रों से कर वसूल कर सरकारी खजाने को भर सकें। जमीन मिलने के उपरांत जमींदारों ने इन आदिवासी समुदायों पर कर (Tax) का बोझ लाद दिया। अतः इन समुदाय के लोगों और जमींदारों के बीच अक्सर विवाद होता रहता था। इसी विवाद में भीम के पिता की हत्या जमींदारों द्वारा करवा दी गई।
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पिता की मृत्यु के उपरांत कोमाराम भीम अपने परिवार सहित करीमनगर के पास जमींदार लक्ष्मण राव के बंजर भूमि में जाकर रहने लगे। वहां उन्होंने अपने जीवन निर्वाह के लिए खेती शुरू कर दी लेकिन धीरे-धीरे वहां भी टैक्स वसूलने वाले अपना मुंह फैलाने लगे और इन लोगों को अक्सर कर (Tax) देने के लिए प्रताड़ित करने लगे। एक बार ऐसे ही कर (Tax) के लिए प्रताड़ित कर रहे निजाम शासन के अधिकारी सिद्दीक़ साहब की हत्या कोमाराम भीम के हाथों हो गई।
कोमाराम का संघर्ष:
कोमाराम भीम को वहां से भागना पड़ा। वहां से भागकर वे वहीँ कुछ दूरी पर स्थित एक छोटे शहर चंदा पहुँच गए जहाँ उनकी मुलाकात एक प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाले विटोबा से हुई। विटोबा ने कोमाराम की बहुत मदद की। विटोबा की मदद से कोमाराम ने हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया परन्तु एक समय ऐसा आया जब विटोबा को वहां की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। विटोबा के गिरफ्तार होने के उपरांत कोमाराम वहां से भागकर असम चले गए।
असम में कोमाराम ने कुछ वर्षों तक चाय के बागान में काम किया और इसके खेती की विधि को भी सीखा। असम में भी किसानों के साथ बहुत अधिक शोषण होता था जिसके खिलाफ उन्होंने वहां आवाज उठाई और बहुत से आन्दोलनों में भाग भी लिया। एक बार वहां उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 4 साल के लिए जेल में डाल दिया गया लेकिन कुछ ही दिनों में वह जेल से फरार हो गए और वापस अपने गाँव की तरफ चल दिए।
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कुशासन के खिलाफ उनका अभियान:
असम में रहते समय ही उन्होंने हैदराबाद के ही एक स्वतंत्रा सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू के बारे में सुन रखा था। कोमाराम उनसे बहुत प्रेरित थे अतः वह अपने लोगों और क्षेत्रों के लिए कुछ करना चाहते थे। वापस आने के बाद वे लच्छू पटेल नामक एक आदमी के साथ काम करने लगे। उन्होंने लच्छू पटेल के निजाम के साथ चल रहे जमीनी विवाद में बहुत मदद भी की। अतः धीरे-धीरे वे हैदराबाद के निजाम शासन की आँखों में खटकने भी लगे थे।
कोमाराम अपने विवाह के उपरांत खेती-किसानी के कार्य में लग कर अपना जीवन-निर्वाह करना चाहते थे परन्तु फिर से वन अधिकारियों द्वारा गोंड समुदाय के लोगों को डराया-धमकाया जाने लगा और उनसे जबरन कर वसूलने का प्रयास किया जाने लगा। अतः उन्होंने हैदराबाद के निजाम से मिलकर प्रत्यक्ष रूप से अपनी मांग रखनी चाही लेकिन निजाम शासन ने उनकी मांग स्वीकार करने से मना कर दिया। अब उन्होंने सोच लिया कि यदि अपना अधिकार प्राप्त करना है तो तरीका बदलना पड़ेगा।
उन्होंने धीरे-धीरे आस-पास के जिलों में रहने वाले सभी गोंड समुदाय के लोगों को एक साथ मिलाना शुरू कर दिया तथा गोंड समुदाय के लिए एक अलग राज्य की मांग करने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने एक गुरिल्ला सेना भी तैयार कर ली। उन्होंने अपने इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए “जल जंगल जमीन” नामक एक नारा दिया जो धीरे-धीरे बहुत प्रसिद्ध हो गया।
कोमाराम की हत्या:
कोमाराम ने हैदराबाद के निजाम और अंग्रेजी सेना के कुशासन के खिलाफ अपने विद्रोहों से उनके दांत खट्टे कर दिए थे। कोमाराम धीरे-धीरे एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरकर सामने आ गए। उन्हें देख लोगों में हिम्मत भर जाती है। लोग उन्हें अपने प्रेरणास्रोत के रूप में देखने लगे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता हैदराबाद के निजाम शासन और अंग्रेजों को बिलकुल भी रास ना आई।
उन लोगों ने कोमाराम के खिलाफ गुप्तचर लगा रखे थे और फिर एक दिन वैसा समय भी आया जब किसी गुप्तचर के द्वारा दिए गए सूचना के आधार पर अंग्रेजी और निजामी सेना द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के उपरांत उनके और उनकी अन्य सहयोगियों की लाशों को जंगलों में ही दफ़न कर दिया गया। कुछ तथ्यों के अनुसार उनकी हत्या अक्टूबर 1940 में हुई थी लेकिन गोंडी समुदाय के लोग 8 अप्रैल 1940 को उनकी हत्या का दिन मानते हैं।
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कोमाराम की प्रसिद्धि:
आंध्र प्रदेश में गोंडी समुदाय का प्रतिनिधित्व समय-समय पर अनेक नेताओं द्वारा किया गया लेकिन जो सम्मान और उपलब्धि कोमाराम भीम को प्राप्त हुई वह किसी को भी नहीं मिली। आज भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के गोंडी समुदाय के लोगों द्वारा कोमाराम भीम के पुण्य तिथि को अस्वयुजा पौरनामी के रूप में मनाया जाता है। आज भी वहां के लोग अपने लोकगीतों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं।
कोमाराम के जीवन पर आधारित फ़िल्में:
कोमाराम के जीवन के उपलब्धि का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उनकी मृत्यु को 80 साल बीतने के बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है बल्कि समय-समय पर उनके जीवन पर आधारित फिल्मों का निर्माण होता रहा है। वर्ष 1990 में ‘कोमाराम भीम’ नामक एक फिल्म का निर्माण तेलुगु भाषा में किया गया था जो कि बहुत हिट साबित हुई थी और उसके उपरांत इस फिल्म को बहुत से अवार्ड भी मिले थे।
अब फिर से तेलुगु भाषा में ही एक और फिल्म ‘RRR’ का निर्माण मशहूर फिल्म डायरेक्टर एस.एस राजमौली के निर्देशन में किया जा रहा है जो कि कोमाराम भीम के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म में कोमाराम भीम की भूमिका में दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर अभिनेता एनटीआर जूनियर नजर आएंगे। वहीँ अल्लूरी सीताराम राजू की भूमिका में रामचरण तेजा तथा विटोबा की भूमिका में अजय देवगन नजर आएंगे। यह फिल्म 7 जनवरी 2022 को रिलीज़ होगी।
कोमाराम का जीवन बेहद कम समय का था परन्तु उन्होंने उतने ही वर्षों को इस प्रकार जिया और अपने लोगों के लिए ऐसा काम किया कि युगों-युगों तक उनके नाम का दिया हमारे दिलों में जलता रहेगा और अपने साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए हमे प्रेरित करता रहेगा।
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