नैमिषारण्य धाम उत्तर प्रदेश के सभी धार्मिक स्थानों और धामों में प्रमुख स्थान रखता है। नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश की राजधानी से करीब 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के मिश्रिख थाना क्षेत्र में स्थित है। मिश्रिख सीतापुर जिले के अंतर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। नैमिषारण्य एक अत्यंत प्राचीन धार्मिक प्रतिष्ठान है जिसका सनातन धर्म से अत्यंत घनिष्ठ सम्बन्ध है। नैमिषारण्य के बारे में कई प्राचीन कहानियां भी प्रचलित है जो यह सिद्ध करती हैं कि यह स्थान प्राचीन समय से ही भारतीय सनातन धर्म को अपने हृदय में संजोए हुए है।
प्रथम कहानी के अनुसार,
एक बार इंद्रलोक पर वृत्र नामक असुर ने इंद्र को पराजित कर अधिकार कर लिया था। इंद्र अपने अथक प्रयास के उपरांत भी उसे पराजित नहीं कर सके। अंततः थक-हार कर वे भगवान् विष्णु के पास पहुंचे। भगवान् विष्णु ने उनकी पीड़ा सुनने के बाद बोले कि वृत्र को पराजित करने का मात्र एक ही उपाय है। इंद्र जल्द से जल्द किसी भी उपाय के द्वारा उसे पराजित कर अपना इंद्रलोक वापस पाना चाहते थे इसीलिए वे उपाय जानने के लिए उत्सुक थे। भगवान् विष्णु ने कहा कि यदि महर्षि दधीचि के शरीर के हड्डियों से निर्मित वज्र मिल जाए तो वृत्र पर जीत हासिल की जा सकती है।
इंद्र एक क्षण भी गंवाना नहीं चाहते थे अतः वह शीघ्र ही महर्षि दधीचि के शरण में पहुंचे और उन्हें अपनी पूरी व्यथा सुना दी। महर्षि उनकी मदद को तैयार हो गए परन्तु इसमें उनकी मृत्यु तय थी क्यूंकि बिना जान गवाएं वह अपने शरीर की हड्डी इंद्र को नहीं दे सकते थे। अतः महर्षि दधीचि ने इंद्र से कहा कि मेरी असीम इच्छा है कि अपने अंतिम साँस लेने से पूर्व मैं भारत के सभी नदियों में स्नान करूँ। यह सुनकर इंद्र दुविधा में पड़ गए कि यदि महर्षि देश के सभी नदियों में स्नान करने लगे तो बड़ी देर हो जायेगी और इंद्रलोक में बहुत अनर्थ हो जायेगा।
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यहाँ भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने महर्षि दधीचि से विनती करते हुए कहा कि ‘हे ऋषिवर यदि आप भारत के सभी नदियों में स्नान करना चाहते हैं तो मैं भारत के सभी नदियों के जलों को एक कुंड में समाहित कर दे रहा हूँ आप उसमे स्नान कर लीजिये क्यूंकि यदि आप सभी नदियों तक जा-जाकर स्नान करने लगेंगे तो बड़ी देर हो जाएगी’ महर्षि भगवान् विष्णु के इस विचार से सहमत हो गए और तदुपरांत भगवान् विष्णु ने यहीं नैमिषारण्य में एक कुंड में भारत के सभी नदियों के जलों को समाहित कर दिया जिसमे महर्षि दधीचि ने स्नान कर अपने शरीर का त्याग किया तथा उसके उपरांत उनके शरीर के हड्डियों से बने वज्र का प्रयोग कर इंद्र ने वृत्र को पराजित किया तथा इंद्रलोक को वापस अपने अधिकार में लिया।
भगवान् विष्णु के द्वारा बनाया गया कुंड अभी भी उसी स्थान पर विद्यमान है। जहाँ अभी भी निरंतर साफ और शुद्ध जल निकलता रहता है। इस कुंड से हजारों वर्षों से निरंतर जल निकला रहा है और अभी तक इसके मुख्य स्रोत के बारे में कुछ नहीं पता चला है कि यह जल कहाँ से आता है।
दूसरी कहानी के अनुसार
एक बार देवकालीन मुनि नारद जी को तीनों लोकों के सबसे पवित्र 3 स्थलों को चुनने का कार्य मिला। नारद मुनि अपने इस कार्य में सबसे पहले हिमालय पर स्थित भगवान् शिव के निवास स्थल कैलाश पर्वत पर पहुंचे। इसके बाद दूसरे स्थान के लिए समुद्र में स्थित भगवान् विष्णु के निवास स्थल क्षीर सागर पहुंचे और जब तीसरे स्थान को चुनने की बात आई तो वह नैमिषारण्य के जंगलों में स्थित जल स्रोत के पास पहुंचे और इसे तीसरा पवित्र स्थान बताया था। अतः उपरोक्त कहानियों और तथ्यों के आधार पर हमे नैमिषारण्य धाम के महत्ता के बारे में बखूबी से पता चलता है।
नैमिषारण्य धाम में दर्शनीय स्थल:
नैमिषारण्य धाम में अनेक दर्शनीय स्थल है जिन्हे दर्शन कर आप अपने-आप को अत्यंत भाग्यशाली समझ सकते हैं और अपने मन को शांति प्रदान कर सकते हैं। नैमिषारण्य धाम पहुँचने वाले श्रद्धालु सामान्यतः प्रथम दृष्टया अत्यंत प्रसिद्ध और प्राचीन पवित्र कुंड में स्नान करते हैं और तदुपरांत किसी भी देवस्थान में दर्शन हेतु पहुँचते हैं।
ललिता देवी मंदिर:
ललिता देवी मंदिर नैमिषारण्य धाम के सभी मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर माता ललिता देवी को समर्पित है। इस मंदिर का भी बहुत प्राचीन इतिहास है। ललिता देवी मंदिर के बारे में प्रचलित मत के अनुसार जब देवी सती अपना शरीर त्याग रही थीं तो उनके शरीर के 52 टुकड़े हुए और सभी टुकड़े पृथ्वी लोक के अनेक हिस्सों में जाकर गिरे। इसी क्रम में देवी सती के शरीर का हृदय भाग यहाँ आकर गिरा जहाँ बाद में एक मंदिर का निर्माण करवाया गया और उसे ललिता देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
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आज प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर प्रांगण में माता के दर्शन हेतु पहुँचते हैं। ललिता देवी मंदिर के बारे में लोगों का मंतव्य है कि यहाँ आये हर एक श्रद्धालु की इच्छापूरण माता के द्वारा की जाती है। जो भी भक्त माता से कोई विनय-विनती करता है, माता उसे उसका फल अवश्य प्रदान करती हैं।
हनुमानगढ़ी:
ललिता देवी मंदिर से करीब 1 किलोमीटर दूर भगवान् हनुमान को समर्पित हनुमानगढ़ी मंदिर भी स्थित है। हनुमानगढ़ी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान् हनुमान पृथ्वी से निकलकर अहिरावण का वद्ध किए थे। यहाँ स्थापित भगवान् हनुमान की प्रस्तर मूर्ती के एक कंधे पर भगवान् राम और दूसरे कंधे पर श्री राम के छोटे भाई श्री लक्ष्मण जी बैठे हैं।
व्यास गद्दी:
नैमिषारण्य धाम के सबसे दक्षिणी छोर पर गोमती नदी के किनारे व्यास गद्दी स्थित है। व्यास गद्दी का सम्बन्ध वेद व्यास से है और वेद व्यास का सम्बन्ध महाग्रंथ महाभारत से है। अर्थात महाभारत के रचनाकार वेद व्यास को समर्पित मंदिर का निर्माण यहाँ करवाया गया है। इस स्थल के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों को धर्म-शिक्षा दी थी। वेद व्यास जी बद्रीनाथ में महाभारत की रचना करते थे और यहाँ व्यास गद्दी में उसका उच्चारण अपने शिष्यों को करते थे। व्यास गद्दी में ही एक प्राचीन बरगद का पेड़ भी स्थित है। इस पेड़ की एक शाखा पर एक पट्टी टंगी है जिस पर इस पेड़ की आयु 5047 वर्ष लिखा हुआ है अर्थात यह पेड़ करीब 5000 वर्ष पुराना है जो अभी भी जीवित अवस्था में वहां अपनी हरियाली बिखेर रहा है।
मनु तपस्थली:
व्यास गद्दी से पूर्व दिशा में 50 मीटर दूर मनु तपस्थली है। जहाँ मनु और सतरूपा जिन्हे कि प्रथम पुरुष और स्त्री माना जाता है कि तपस्थली स्थित है। इस तपस्थली में इनसे जुड़े अनेक स्मृतियों को संजो कर रखा गया है। इस तपस्थली में प्रार्थना गृह भी है जहाँ लोग बैठकर ईश्वर के समक्ष प्रार्थना कर सकते हैं।
नैमिषारण्य धाम में उपरोक्त दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त भी अनेक मंदिर और देवालय हैं जहाँ लोग देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। इस धाम में चारों तरफ दुकाने सजी रहती हैं जिनमे अधिकतर दुकाने पूजन-सामग्री से जुड़ीं हैं। यहाँ खाने-पीने के लिए भी छोटे-छोटे ढाबे स्थित हैं। हालाँकि दूर से आये श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु उच्च-गुणवत्ता की व्यवस्था का अभाव है।
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