‘षड़यंत्र’ एक ऐसा शब्द है जिसे यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ सुनियोजित तरीके से अपना लिया गया तो उस व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्ट में डाला जा सकता है। षड़यंत्र कोई नई नीति नहीं है, वर्षों से इसका प्रयोग होता रहा है और वर्तमान समय में भी हो रहा है और आगे भी होता ही रहेगा। यह एक ऐसी नीति है जिसे अनेक राजाओं-महाराजाओं ने अनेक दूसरे राजाओं-महाराजाओं के खिलाफ प्रयोग किया है। राजाओं के अलावा आम आदमी भी अपने जीवन में अक्सर इसका प्रयोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कर ही लेता है। लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं भारतीय इतिहास के एक ऐसे षड़यंत्र के बारे में जो दिखने में तो किसी और के खिलाफ था परन्तु रचा किसी और के खिलाफ गया था।
महाभारत की कहानी:
षड़यंत्र की इस कहानी का सम्बन्ध दुनिया के सबसे प्राचीनतम और महान कृतियों में से एक महाभारत से सम्बंधित है। इस षड़यंत्र के बारे में आगे कुछ भी बताने के पूर्व हम महाभारत के बारे में एक संक्षेप विवरण देना चाहेंगे। दरअसल महाभारत ग्रन्थ की रचना वेद व्यास जी के द्वारा की गई थी। इस ग्रन्थ के अनुसार आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व भारत के हस्तिनापुर में एक राजा का राज्य था जिनका नाम धृतराष्ट्र था। धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों जिन्हे मूलतः कौरवों के नाम से जाना जाता था।
कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत की लड़ाई लड़ी गई थी जिसमे भगवान् कृष्ण के उचित मार्गदर्शन के कारण पांडवों को विजय हासिल हुई थी। महाभारत युद्ध कई षडयंत्रों के कारण लड़ा गया था। इस युद्ध में सबसे बड़ा षड़यंत्रकारी शकुनि था जिसने कि अपने कुटिल बुद्धि का प्रयोग कर कौरवों को हस्तिनापुर की गद्दी दिलवाने का अथक प्रयास किया था और फलतः पांडवों को जंगलों में शरण लेनी पड़ी थी।
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शकुनि का षड़यंत्र:
महाभारत की पूरी गाथा में शकुनि का चित्रण सबसे धूर्त, षड्यंत्रकारी, कुटिल बुद्धि इत्यादि का रहा है। शकुनि के षड़यंत्र की सीमा तब और अधिक घातक सिद्ध हुई जब उसने अपने कुटिल चाल का प्रयोग कर पासे के खेल में पांडवों को हरा दिया और द्रौपदी को चिर-हरण का शिकार होना पड़ा। लेकिन क्या वास्तव में शकुनि इतना बुरा व्यक्तित्व का व्यक्ति था? क्या वह वास्तव में पांडवों का पूरा राज-पाट छीन लेना चाहता था या उसकी इस कुटिलता के पीछे कोई और कारण छिपा था? इन सभी प्रश्नों का उत्तर महाभारत ग्रन्थ में नहीं मिलता है परन्तु कुछ विश्वस्त तथ्यों से कुछ ऐसी कहानी सामने आती है जो शकुनि को निर्दोष साबित करने का पूरा प्रयास करती है।
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शकुनि:
शकुनि, धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी का भाई था तथा अपने पिता सुबाला की मृत्यु के उपरांत गांधार का शासक बना था। महाभारत ग्रन्थ के अनुसार वह कौरवों और पांडवों के बीच उत्पन्न विवाद में कौरवों का पक्षधर तथा उनका सबसे बड़ा सलाहकार था क्यूंकि वे उसके भांजे थे। शकुनि हमेशा अपने कुटिल चाल के दम पर कौरवों को मजबूत बनाने में सफल हो जाता था।
उसने अपने आखिरी दम तक कौरवों का साथ दिया था और अंततः महाभारत के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई थी। लेकिन जब महाभारत के अलावा कुछ अन्य तथ्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो कुछ ऐसी कहानियां भी सामने आती हैं जिनके अनुसार वह महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ नहीं दे रहा था बल्कि अपने और अपने परिवार के साथ हुए शोषण और अत्याचार का बदला वह कौरवों और उनके पिता धृतराष्ट्र से ले रहा था।
शकुनि ने क्यों लिया बदला?
अब यह प्रश्न उठना एकदम लाजिमी है कि आखिर वह कौरवों से क्यों बदला लेना चाहेंगा? इस प्रश्न के उत्तर में दो कहानियां प्रचलित है जो यह सिद्ध करने का पूरा-पूरा प्रयास करती हैं कि शकुनि क्यों कौरवों और धृतराष्ट्र से बदला लेना चाहता था।
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पहली कहानी के अनुसार:
पहली कहानी के अनुसार शकुनि की बहन गांधारी के विवाह के पूर्व उसमे मांगलिक दोष होने के बारे में पता चला। यह पता चलने के उपरांत गांधारी के पिता सुबाला ने गांधारी का विवाह सबसे पहले एक बकरे से करवाना उचित समझा ताकि बकरे के मृत्यु के उपरांत गांधारी का दोष समाप्त हो जाएगा और वह बाद में गांधारी का विवाह किसी राजा से करवा देंगे। कुछ समय बाद गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हो गया। धृतराष्ट्र सहित भीष्मपितामह को जब गांधारी से विवाह होने के उपरांत इस घटना के बारे में पता चला तो वे लोग बहुत नाराज हुए कि सुबाला ने धोखे से एक विधवा का विवाह धृतराष्ट्र के साथ कर दिया है।
अतः धृतराष्ट्र ने सुबाला, उनकी पत्नी और उनके सौ पुत्रों को जेल में डाल दिया। इन सौ पुत्रों में से एक शकुनि भी था जो कि अपने बाकि भाइयों में सबसे चतुर और शातिर था। जेल में इन सभी कैदियों को चावल के एक-एक दाने खाने के लिए दिए जाते थे। सुबाला को लगा कि यदि हम सभी चावल के एक-एक दाने खाएंगे तो एक न एक दिन सभी मारे जायेंगे। अतः वे लोग अपने हिस्से के दाने भी शकुनि को दे देते थे ताकि वह जिन्दा रहे।
सुबाला के अंतिम दिनों में धृतराष्ट्र ने उसकी आखिरी इच्छा पूछी तो सुबाला ने अपने पुत्र शकुनि को आजाद करने को कहा। जिसके उपरांत धृतराष्ट्र ने शकुनि को आजाद कर दिया। आजाद होने के उपरांत शकुनि ने धृतराष्ट्र से अपने सभी भाइयों और माता-पिता के साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए प्रण लिया तथा अपने कुटिल बुद्धि का प्रयोग कर उन्हें महाभारत जैसे भयानक युद्ध में झोंक दिया जहाँ सभी कौरवों की मृत्यु हो गई।
दूसरी कहानी के अनुसार:
दूसरी कहानी के अनुसार शकुनि और उसका परिवार गांधारी से अत्यधिक प्रेम करता था और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देना चाहते थे परन्तु भीष्मपितामह ने बलपूर्वक गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र से करवा दिया था जिससे शकुनि खिन्न रहता था। शकुनि के परिवार द्वारा विरोध करने पर उसके परिवार के खिलाफ अत्याचार किये गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया था। अतः उसी का बदला लेने के लिए शकुनि ने महाभारत जैसे भयवाह युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार किया तथा कौरवों को उसमे झोंक दिया।
उपरोक्त बताये गए कहानियों के आधार पर कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि महाभारत जैसे भयावह युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने में मुख्य भूमिका शकुनि की ही थी जिसके दम पर उसने अपने परिवार के साथ हुए अत्याचार का बदला लिया तथा स्वयं भी उसी युद्ध में शहीद हो गया जिस कारण सभी युद्ध लड़ने वालों में सबसे पहले उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।
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