गोल्डेन टेम्पल एक ऐसा नाम जिसे यदि कोई पहली बार सुनेगा तो उसे इस बात का जरूर अहसास हो जाएगा कि यह एक ऐसे मंदिर का नाम होगा है जो गोल्डेन (सोने के) रंग का होगा या गोल्डेन (सोने) से बना होगा। जी हाँ, आज हम जिस मंदिर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं वह सोने से तो नहीं बना है लेकिन उस मंदिर पर सोने की परत जरूर चढ़ी है और यह सोने के रंग में हमेशा चमचमाता रहता है।
गोल्डन टेम्पल के अन्य नाम।
गोल्डन टेम्पल या स्वर्ण मंदिर जिसे और भी कई नामों जैसे हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब इत्यादि से भी जाना जाता है। यह सुनहरे रंग का मंदिर पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित है। इस मंदिर की ख्याति भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने-कोने में है। इस मंदिर की ख्याति-प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ प्रतिदिन 1 लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।
मंदिर की स्थापना।
इस मंदिर का सम्बन्ध मुख्यतः सिक्ख धर्म से है परन्तु यह सभी के लिए सामान रूप से दर्शनीय है। इस मंदिर का निर्माण सिक्खों के चौथे गुरु, गुरु राम दास ने वर्ष 1577 में करवाया था। यह मंदिर एक पवित्र सरोवर के बीच में स्थित है। जिस जगह इस मंदिर का निर्माण हुआ है उसके बारे में दो कहानियां प्रचलित हैं, पहली कहानी के अनुसार सिक्खों के चौथे गुरु, गुरु राम दास ने चंदा इकठ्ठा कर 700 रूपये में इस जगह को ख़रीदा था जबकि दूसरी कहानी के अनुसार तत्कालीन मुग़ल सम्राट अकबर ने यह जगह उन्हें दान में दिया था।
गुरु राम दास के बाद सिक्खों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जन दास ने इसका निर्माण कार्य आगे बढ़ाया। गुरु अर्जन दास के बढ़ते प्रसिद्धि को देखकर मुग़ल सम्राट जहांगीर उन्हें जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने लगा और उनसे जुड़े उनके अनुयायियों को तरह-तरह की यातनाएं देने लगा था। अंततः गुरु अर्जन दास शिवालिक पहाड़ियों की तरफ चले गए। बाद में सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह ने इस मंदिर के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया।
विदेशी आक्रमण।
समय-समय पर अलग-अलग विदेशी आक्रमणकारियों जैसे मुग़लों और अफ़ग़ानों द्वारा गोल्डेन टेम्पल को तहस-नहस कर दिया गया लेकिन उसके बावजूद सिक्खों ने बार-बार इसका पुनर्निर्माण करवाया। जब पंजाब पर सिक्ख राजा, महाराजा रणजीत सिंह का प्रभाव कायम हुआ तब उन्होंने वर्ष 1809 में पुनः इसका निर्माण शुरू करवाया और मार्बल और तांबे से इस मंदिर का काम पूरा करवाया। वर्ष 1830 में महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर पर सोने के पत्तर चढ़वाये जिसके बाद से इसे ‘गोल्डेन टेम्पल’ कहा जाने लगा।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और गोल्डेन टेम्पल।
वर्ष 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में ‘गोल्डेन टेम्पल’ का बहुत अहम् स्थान है। ऑपरेशन ब्लू स्टार इस मंदिर में ही चलाया गया था जिस कारण मंदिर को बहुत अधिक क्षति पहुंची थी जिसे बाद में पुनः ठीक करवाया गया। एक डाटा के अनुसार ऑपरेशन ब्लू स्टार में करीब-करीब 400 से अधिक सिक्ख मिलिटेंट और आम लोगों की मौत हुई थी।