हमारे जीवन में तीर्थों का बड़ा ही महत्व है चाहें हम जिस धर्म का पालन करते हों। दुनिया के सभी धर्मों के लिए कोई ना कोई तीर्थ स्थान उस धर्म के अनुपालकों के लिए बहुत ही महत्व रखता है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में स्थित अयोध्या धाम हिन्दू धर्म के अनुपालकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
यह तीर्थस्थल हिन्दू देवता भगवान श्री राम की जन्मस्थली रही है जिस वजह से पूरी दुनिया के हिन्दुओं के दिलों में अयोध्या धाम का बहुत ही खास स्थान है।प्राचीन काल से ही श्रद्धालु अयोध्या धाम के दर्शन हेतु दूर-दूर से अयोध्या पहुँचते रहे हैं। लेकिन आधुनिक काल में जब से श्री राम जन्मस्थली के पुनर्निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है तब से अयोध्या धाम के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की संख्या में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है।
ऐसे में श्रद्धालुओं के लिए यह जानना बेहद आवश्यक है कि अयोध्या धाम पहुँचने पर कहाँ-कहाँ दर्शन करना या घूमना चाहिए। तो चलिए आपको रूबरू करवाते अयोध्या के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों से।
1- सरयू घाट:
अयोध्या पहुँचने के उपरांत सबसे पहले श्रद्धालु को सरयू घाट पहुंचना चाहिए। दरअसल अयोध्या धाम पवित्र सरयू नदी के किनारे पर स्थित है। श्रद्धालुओं को सरयू घाट पहुँच कर किसी साफ़-सुथरे जगह पर स्नान कर सरयू माँ को भी नमन कर लेना चाहिए। सरयू घाट पर बहुत सारे धर्म पंडित भी बैठे मिल जाते है जो अन्य आवश्यक धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से पूजा करवाते हैं। यदि आप उनसे संपर्क करना चाहें तो कर सकते हैं।
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2- हनुमान गढ़ी:
सरयू घाट में स्नान के उपरांत आपको हनुमान गढ़ी मंदिर पहुंचना चाहिए। सरयू घाट से हनुमान गढ़ी मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान् श्री राम जन्मस्थली दर्शन के पूर्व हनुमान गढ़ी मंदिर का दर्शन आवश्यक होता है।
यह मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु दिन-भर खुला रहता है। हनुमान गढ़ी मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान हनुमान अपने बाल रूप में अपनी माँ अंजनी के गोद में बैठे हुए दिखाई पड़ते हैं।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान् श्री राम लंका विजय के उपरांत माता सीता को लेकर अयोध्या पहुंचे थे तब हनुमान भी उनके साथ यहाँ आ गए थे। भगवान श्री राम ने हनुमान जी को अयोध्या की रक्षा की जिम्मेदारी दी थी। जिसके उपरांत वह यहाँ रहने लगे थे। यह मंदिर 52 बीघे में फैला हुआ है।
इस मंदिर पर कई बार कट्टर मुसलमानों द्वारा आक्रमण भी किया गया और तोड़ने का प्रयास किया गया। वर्ष 1855 में मुस्लिमों और इस मंदिर के रखवाले रामानंदी बैरागियों के बीच झड़प भी हुआ था लेकिन अवध के नबाब ने इसे तोड़ने से बचाने में अहम् योगदान निभाया था।
3- श्री राम जन्मस्थली:
श्री राम जन्मस्थली, अयोध्या के सभी दर्शनीय स्थलों में सबसे उच्च और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पूरी दुनिया से हिन्दू धर्म के अनुपालक भगवान् श्री राम जन्मस्थली के दर्शन हेतु यहाँ पहुँचते हैं। श्री राम जन्मस्थली के दर्शन हेतु एक समय-सीमा का निर्धारण किया गया है। यह मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 11 बजे तक खुला रहता है उसके उपरांत दोपहर 2 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक खुला रहता है।
इस मंदिर में भगवान् के दर्शन हेतु जाने से पूर्व सभी अनावश्यक वस्तुओं जैसे घड़ी, धुप के चश्मे, बैग, मोबाइल तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, खाद्य अथवा पेय पदार्थ, पूजा सामग्री इत्यादि को वहीँ आस-पास उपस्थित लॉकर में रखना पड़ता है क्यूंकि इन्हे मंदिर परिसर में ले जाना निषेध है। इस मंदिर परिसर में अत्यंत उच्च-कोटि के सुरक्षा उपाय किये गए हैं।
हालाँकि श्री राम जन्मस्थली अभी भी अपने निर्माण अवस्था में है और भगवान् श्री राम के मूर्तियों को एक दूसरे स्थान पर अवस्थित किया गया जहाँ दर्शन के उपरांत मंदिर के पुजारी द्वारा प्रसाद के पैकेट भी दिए जाते हैं। इस मंदिर में दर्शन हेतु जाने के लिए अलग रास्ते तथा निकलने के लिए किसी अलग रास्ते का प्रयोग किया जाता है।
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4- राम रसोई:
श्री राम जन्मस्थली के दर्शन के बाद जब आप बाहर निकलेंगे तो वहीं पास में ही आपको राम रसोई का प्रांगण दिख जाएगा। राम रसोई वह स्थान जहाँ श्री राम जन्मस्थली के दर्शन हेतु आये श्रद्धालुओं को भोजन करवाया जाता है।
यहाँ श्रद्धालुओं से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु राम रसोई में भोजन का आनंद उठाते हैं। यह खिलाये जाने वाले भोजन में पूड़ी-सब्जी, दाल-चावल, चटनी इत्यादि पकवान शामिल होते हैं।
राम रसोई में भोजन ग्रहण के पूर्व श्रद्धालुओं को वहां बने एक काउंटर पर एक रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। यह रजिस्ट्रेशन निःशुल्क होता है। इस रजिस्ट्रेशन के लिए श्रद्धालु को अपना आधार-कार्ड दिखाना पड़ता है।
यदि एक साथ एक से अधिक श्रद्धालु भोजन के लिए पहुंचे हैं तो किसी एक ही श्रद्धालु के आधार कार्ड को दिखाकर सभी लोग रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर अपना नाम और अन्य जानकारियां भरकर भोजन का लाभ उठा सकते हैं। राम रसोई का संचालन पटना के महावीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
5- दशरथ महल:
अयोध्या धाम दर्शन के दौरान दशरथ महल का दर्शन भी अपने आप में अत्यंत रोमांचित करने वाला पल होता है। दशरथ महल का नाम भगवान् श्री राम के पूज्य पिताश्री और अयोध्या के महान शासक रहे महाराज दशरथ के नाम पर पड़ा है।
ऐसा मत है कि वर्तमान समय में जिस स्थान पर दशरथ महल का निर्माण करवाया गया है वहीं पर त्रेता युग में महाराज दशरथ ने अपना महल बनवाया था। इस महल के बीचो-बीच बने एक आँगन नुमा स्थल के बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थल है जहाँ भगवान् श्री राम अपने अनुज भाईयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ बचपन में खेला करते थे।
दशरथ महल को बड़ी जगह के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान दशरथ महल बेहद ही खूबसूरत और कई रंगों में सजा हुआ महल है। इस महल में प्रवेश के लिए एक विशाल मुख्य द्वार है।
मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करने पर एक खुला स्थान है और उसके बाद एक अत्यंत ही खूबसूरत मंदिर प्रांगण हैं जहाँ भगवान् श्री राम, माता सीता के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियां अवस्थित हैं। यहाँ दिन भर भजन कीर्तन हुआ करता है।
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6- कनक भवन:
अयोध्या धाम दर्शन के दौरान आप कनक भवन का दर्शन करना ना भूलें। यह भवन बेहद ही खूबूसरत और मनलुभावन है। मुख्यतः इस भवन का सम्बन्ध माता सीता से है। भगवान् श्री राम और माता सीता के विवाह के उपरांत यह भवन माता सीता को मुंह दिखाई में मिला था।
दरअसल विवाह के उपरांत जब वे दोनों लोग जनकपुरी से अयोध्या पहुंचे तो अयोध्या की महारानी कैकेयी ने माता सीता को मुंह दिखाई में यह कनक भवन उपहार स्वरुप दिया था। ऐसा कहा जाता है कि यह भवन पूरी तरह सोने का बना हुआ था इसलिए इसे कनक भवन नाम दिया गया क्यूंकि कनक का अर्थ स्वर्ण (सोना) ही होता है।
द्वापर युग के प्रारम्भ में भगवान् श्री राम के बड़े पुत्र महाराज कुश ने इस भवन का जीर्णोद्धार करवाया था। द्वापर युग के मध्य में महाराज ऋषभ देव ने इसे दुबारा बनवाया तथा द्वापर युग के अंत में भगवान् श्री कृष्णा यहाँ स्वयं अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ पधारे थे। कलियुग में सबसे पहले महराज विक्रमादित्य ने इसका पुनः जीर्णोद्धार करवाया।
इसके उपरांत समुद्रगुप्त ने भी इसका निर्माण करवाया था परन्तु सम्वत 1084 में एस. सलारगंज ने इसे ध्वस्त कर दिया। वर्तमान समय में अयोध्या में कनक भवन का जो यह स्वरुप दिखाई देता है इसका निर्माण राजस्थान के ओरछा राज्य की रानी वृषभान कुंवर के द्वारा करवाया गया है।
कनक भवन के गर्भ गृह में भगवान् श्री राम और माता सीता की 3 जोड़ी मूर्तियां स्थापित हैं। दर्शनार्थी के दाहिने हाथ की तरफ की मूर्ति ओरछा राज्य की महारानी वृषभान कुंवर के द्वारा स्थापित है, दर्शनार्थी के बाएं हाथ की तरफ की मूर्ती महाराज विक्रमादित्य के द्वारा स्थापित है तथा सबसे मध्य में स्थित मूर्ती भगवान् श्री कृष्णा द्वारा स्थापित है।
7- नागेश्वरनाथ मंदिर:
नागेश्वर नाथ मंदिर का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। नागेश्वरनाथ मंदिर का सम्बन्ध भगवान शिव से है। इस मंदिर के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान श्री राम के पुत्र कुश सरयू नदी में नौका विहार कर रहे थे उसी दौरान उनके हाथ का कंगन निकलकर सरयू में निवास करने वाले कुमुद नाग की पुत्री कुमुदनी के पास जाकर गिर गया।
जब कुश सरयू में उतरकर अपना कंगन लाने पहुंचे तो कुश और कुमुद नाग में युद्ध हुआ। अंत में जब कुमुद नाग को लगा कि वह कुश के हाथों हार जायेगा तो उसने भगवान् शिव को याद किया। भगवान् शिव वहां प्रकट हुए जिससे उसकी जान बची। कुमुद नाग ने कुश से अपनी पुत्री कुमुदनी के विवाह का प्रस्ताव रखा।
इस युद्ध के उपरांत कुश ने भगवान् से शिव से अनुरोध किया कि वे यहीं रुक जाएँ। भगवान् शिव ने कुश के अनुरोध को स्वीकार कर लिया जिसके फलस्वरूप भगवान् शिव के नाम पर कुश द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया चूंकि भगवान् शिव एक नाग की रक्षा के लिए यहाँ उत्पन्न हुए थे इसलिए इस मंदिर का नाम नागेश्वरनाथ मंदिर रखा गया।
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