दुनिया के लोगों द्वारा अपनी-अपनी प्रथाओं का पालन करना और उनमे श्रद्धा भाव रखना बड़े गर्व की बात मानी जाती है लेकिन जब वही लोग किसी कुप्रथा का पालन करने लगते हैं तो वह बड़े ही शर्म और दुख की बात हो जाती है। दुख की बात इसलिए हो जाती है क्यूंकि किसी कुप्रथा के चलन में आ जाने से अधिकतर सम्पन्न और आर्थिक रूप से मजबूत लोगों को ही लाभ मिलता है जबकि गरीब और महिला वर्ग को हमेशा हानि ही उठानी पड़ती है। आज हम बात करेंगे ऐसे ही एक कुप्रथा के बारे में जिसका नाम है “वानी”।
क्या है यह प्रथा:
यह प्रथा अत्यंत ही निंदनीय और समाज के विकास के विरुद्ध है। यह प्रथा पाकिस्तान के कुछ प्रांतों जैसे बलूचिस्तान और सिंध इत्यादि में प्रचलित है। इन प्रांतों में जब किन्ही दो गुटों के बीच किसी प्रकार का मतभेद, विवाद अथवा हत्याएं हो जाती हैं तो उसके भरपाई के लिए छोटी-छोटी बच्चियों को क्षतिपूर्ति के रूप में दूसरे पक्ष को सौंप दिया जाता है।
आसान भाषा में कहें तो यह कुछ इस प्रकार है कि यदि इन प्रांतों के दो गुटों में लड़ाई अथवा कोई विवाद हो जाता है और एक पक्ष दूसरे पक्ष को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा देता है तो नुकसान पहुँचाने वाला पक्ष पीड़ित पक्ष को अपने घर-परिवार की छोटी-छोटी बहन-बेटियों को क्षतिपूर्ति के रूप में उन्हें सौंप देता है। अब यह पीड़ित परिवार के मन की बात है, चाहे तो वह उस लड़की से अपने परिवार के किसी सदस्य का विवाह करे अथवा उसे अपने घर में नौकरानी बना दे या चाहे जो करे। यह पूरी तरह उसके मर्जी पर आधारित है।
इस प्रथा का इतिहास:
यह प्रथा इस क्षेत्र में करीब 400 वर्षों से विद्यमान है। कहा जाता है कि एक बार यहाँ के दो कबीलाई गुटों के बीच एक खूनी जंग छिड़ गई जो धीरे-धीरे बहुत खतरनाक रूप लेती गई। अंत में उस क्षेत्र के शासक ने जिरगा नामक अमीर लोगों के संगठन के माध्यम से दोनों गुटों के बीच पहल कर इसे समाप्त करवाया। इस पहल के उपरांत पीड़ित पक्ष को नुकसान भरपाई के नाम पर दूसरे पक्ष से सैकड़ों कम उम्र की लड़कियों को दिलवाया गया। इस घटना के उपरांत धीरे-धीरे यह कुप्रथा प्रचलन में आ गई। जिसे अभी भी वहां के लोगों द्वारा पालन किया जाता है और मासूम बच्चियों को शैतानों के हाथों सौंप दिया जाता है।
वर्तमान स्थिति:
यह प्रथा वर्तमान समय में भी वहां प्रचलित है। इस प्रथा के कारण किसी दूसरे के द्वारा किये गए गलत कार्य का परिणाम अत्यंत कम उम्र के बच्चियों को उठाना पड़ जाता है। इस प्रथा में 4 वर्ष से लेकर 16 वर्ष तक की कुंवारी लड़कियों को अधिक उम्र के लोगों द्वारा अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रथा के नाम पर 10 वर्ष की बच्ची का विवाह 40 साल के अधेड़ व्यक्ति से भी कर दिया जाता है। इन क्षेत्रों के लोग बताते हैं कि पुलिस भी इन मुद्दों पर कोई कार्यवाई नहीं करती है बल्कि आँख चुराकर निकल जाती है। इस कुप्रथा के पालन करने वाले लोगों का दलील है कि यह शरिया पर आधारित प्रथा है।
ऐसी घटनाएं:
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समय-समय पर पाकिस्तान में वानी कुप्रथा के बारे में ख़बरें सामने आ ही जाती है। वर्ष 2008 में दो परिवारों के बीच हुए विवाद जिसमे कि लगभग 20 लोगों की मौत हो गई थी के उपरांत पीड़ित परिवार को दूसरे पक्ष की तरफ से 15 लड़कियों को सौंपा गया जिनकी उम्र 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष के बीच थी। इसके उपरांत वर्ष 2012 में हुए एक घटना में एक 10 वर्षीय लड़की का विवाह एक 85 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति से करवा दिया गया था। इस प्रकार के सैकड़ों घटनाएं इन क्षेत्रों में आए दिन घटित होती रहती हैं।
पाकिस्तान सरकार का रवैया:
पाकिस्तान सरकार द्वारा इसे पूरी तरह गैरकानूनी और इस्लाम के विरुद्ध बताया गया है। हालाँकि सरकार के इस रवैये के बावजूद भी इस कुप्रथा पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है बल्कि अभी भी लोग खुलेआम इसका पालन करते रहते हैं।