भारत विविधताओं का देश है जहाँ अनेक धर्म, जाति, समुदाय, वर्ण के लोग रहते हैं। यहाँ विविधताओं का आलम यह है कि यदि आप अभी से पुरे देश के बारे में अध्ययन करना शुरू करेंगे तो पुरे देश के बारे में अध्ययन करते-करते आपकी उम्र ढल जाएगी। भारत के अधिकतम लोगों को यह लगता है कि देश में कुछ प्रमुख धर्म ही विद्यमान है लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इन धर्मों के अंतर्गत कई अन्य समुदाय, समाज भी विद्यमान है जिनके अनुयायियों की संख्या लाखों में है।
छत्तीसगढ़ का “रामनामी समाज”:
आज हम एक ऐसे ही समाज की बात करने जा रहे हैं, जिसे “रामनामी समाज” के नाम से जाना जाता है। मूलरूप से रामनामी समाज का सम्बन्ध छत्तीसगढ़ राज्य से है। रामनामी समाज के अनुयायी छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में ही रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समाज के अनुयायियों की संख्या 20 हजार से 1 लाख के आस-पास होगी।
रामनामी समाज की विशेषता:
जैसा कि नाम से पता चल रहा है, रामनामी समाज के लोग भगवान् राम के अनुयायी होते हैं। रामनामी समाज के लोग हिन्दू धर्म के ही अंग हैं। रामनामी समाज के लोगों को पहचानना बहुत ही आसान है। इस समाज के लोग अपने पुरे शरीर पर “राम” शब्द का टैटू बनवाते हैं। इस समाज के अधिकतर लोगों के पुरे शरीर में “राम” शब्द का टैटू बना होता है। इस समाज के लोग “राम” शब्द का प्रिंट किया हुआ शॉल भी धारण करते हैं।
रामनामी समाज का इतिहास:
रामनामी समाज के लोगों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1890 के आस-पास इस समाज का उद्भव होना शुरू हुआ। इस समाज के संस्थापक “परशुराम” को माना जाता है। वर्ष 1870 में छत्तीसगढ़ में जन्मे “परशुराम” ने ही सबसे पहले अपने ललाट पर “राम” शब्द का टैटू बनवाया था। उसके बाद धीरे-धीरे अन्य लोग उनके साथ जुड़ते गए।
रामनामी समाज के उत्पत्ति का कारण:
रामनामी समाज के उत्पत्ति के पीछे एक अहम् कारण विद्यमान था। दरअसल इसके संस्थापक “परशुराम” हिन्दू धर्म के निम्न जाति “चमार” से सम्बंधित थे और तत्कालीन समय में उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता था। उनके समुदाय के लोगों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी जिससे व्यथित होकर उन्होंने अपने शरीर पर राम नाम का टैटू बनवा लिया और धीरे-धीरे अन्य लोगों को भी इस ओर प्रभावित करने में सफल रहे।
वर्तमान समय में अन्य जातियों के लोग जैसे ब्राह्मण, लोहार, कुर्मी, अन्य भी रामनामी समाज के आधार पर अपने पुरे शरीर पर राम शब्द का टैटू बनवाते हैं।
सामुदायिक मेले का आयोजन:
इस समाज के लोगों द्वारा प्रत्येक वर्ष फसल कटाई के बाद एक मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमे इस समाज के सभी लोग इकठ्ठा होते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।