जब कभी भी भारतीय मिठाइयों की बात होती है तो रसगुल्ले का नाम ना आये ऐसा मुमकिन नहीं है, हाँ ये अलग बात है कि जलेबी को राष्ट्रीय मिठाई का दर्जा प्राप्त है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में रसगुल्ला महत्वहीन है। तो चलिए आज जानेंगे भारतीय रसगुल्ला से जुड़े कुछ अति रोचक तथ्यों के बारे में।
अगर आप भारत में पैदा हुए हैं और अपने जन्म से यहीं पर रहे हैं तो आपने निश्चित तौर पर कभी ना कभी रसगुल्ले का रसास्वादन जरूर किया होगा। रसगुल्ला दो शब्दों ‘रस’ और ‘गुल्ला’ से मिलकर बना है अर्थात ‘गुल्ला’ यानी गोल-गोल दूध से बने मिठाइयों को जब चीनी से बने रस में डाल दिया जाता है तो वह रसगुल्ला बन जाता है। हालाँकि रसगुल्ले की रेसिपी इतनी आसान नहीं है।
रसगुल्ला को कई नामों से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे रसोगुल्ला और रोसोगुल्ला कहा जाता है, ओडिशा में इसे रसागुल्ला कहा जाता है जबकि नेपाल में इसे रसभरी के नाम से जाना जाता है। वैसे रसगुल्ला होता तो बहुत मीठा और स्वादिष्ट है पर इसके साथ कुछ विवाद भी जुड़ें हैं हालाँकि अब सारे विवाद खत्म हो चुके हैं।
जब भी कोई जिज्ञासु व्यक्ति अपने जीवन में कुछ अत्यंत बढ़िया चीज पाता है या खाता है तो उसके मन में उस चीज के बारे में जानने की जिज्ञासा जग जाती है। रसगुल्ला के बारे में भी सारे विवाद यहीं से शुरू हुए जब किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि आखिर इसका जन्म कहाँ हुआ था। कुछ लोगों ने कहा कि रसगुल्ला का जन्म बंगाल में हुआ था फिर कुछ लोगों ने कहा नहीं नहीं इसका जन्म तो ओडिशा में हुआ था।
रसगुल्ला के उत्पत्ति सम्बन्धी विवाद:
ओडिशा में व्याप्त मत:
वर्ष 2015 में ओडिशा की सरकार द्वारा एक कमिटी गठित की और कहा गया कि रसगुल्ला का उद्भव सबसे पहली बार ओडिशा के ‘पुरी जग्गनाथ मंदिर’ में हुआ था। ओडिशा में व्याप्त लोककथाओं के अनुसार- ‘एक बार जब भगवान् जग्गनाथ अपनी पत्नी ‘लक्ष्मी’ को बगैर बताए 9 दिन के रथयात्रा पर चले गए तो माता लक्ष्मी बहुत नाराज हुईं और उन्होंने मंदिर के पवित्र जय-विजय द्वार को बंद करवा दिया और भगवान् के वापस आने पर उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया। अब भगवान जग्गनाथ ने देवी लक्ष्मी को खुश करने के लिए रसगुल्ला दिया था अर्थात उस समय भी रसगुल्ला ओडिशा में बनाया जाता था।’
ओडिशा के एक दूसरे लोककथा के अनुसार- ‘ओडिशा के भुवनेश्वर के पास एक गाँव था जिसका नाम ‘पहला’ था। उस गाँव में बहुत अधिक गायें थी जिनसे वहां के लोगों को बहुत अधिक मात्रा में दूध प्राप्त होता था। गाँव वालों के पास इतना अधिक दूध हो जाता था कि वे उसका खपत नहीं कर पाते थे और ख़राब हो जाने पर उन्हें दूध फेंकना पड़ता था। एक बार जग्गनाथ मंदिर के एक पुजारी ने यह देखा तो उसने वहां के लोगों को रसगुल्ला बनाने की विधि बताई जिसके बाद वहां के लोग रसगुल्ला बनाने लगे और ‘पहला’ अपने क्षेत्र का सबसे बड़ा रसगुल्ला उत्पादन वाला बाजार बन गया।
पश्चिम बंगाल में व्याप्त मत:
पश्चिम बंगाल में व्याप्त मत के अनुसार वर्ष 1868 कोलकाता के एक हलवाई ‘नॉबिन चंद्र दास’ द्वारा सबसे पहले रसगुल्ला बनाया जाता था। ऐसा माना जाता है कि वह चीनी और सूजी मिलाकर रसगुल्ला बनाया करता था। फिर उसके वंशजों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और धीरे-धीरे यह पुरे भारत में प्रसिद्ध हो गया। यह भी कहा जाता है कि एक मारवाड़ी बिज़नेसमैन भगवानदास बागला जो कि नॉबिन चंद्र दास के रसगुल्ले का ग्राहक था ने सबसे रसगुल्ले को सबसे ज्यादा प्रसिद्ध बनाया।
एक बंगाली फ़ूड हिस्ट्रियन ‘प्रणब रे’ के अनुसार कोलकाता हाई कोर्ट के पास ‘ब्रज मोइरा’ नामक व्यक्ति सबसे पहले वर्ष 1866 में रसगुल्ला बेचा करता था जिसके दो साल बाद ‘नॉबिन चंद्र दास’ ने रसगुल्ला बेचना शुरू किया था।
बांग्लादेश में व्याप्त मत:
बांग्लादेश भी रसगुल्ले के उत्पत्ति में बांग्लादेश को श्रेय देता है। बांग्लादेश इतिहासकार शौकत उस्मान के अनुसार ‘नॉबिन चंद्र दास’ के पूर्वज बांग्लादेशी थे जिनसे ‘नॉबिन चंद्र दास’ ने रसगुल्ला बनाना सीखा था और फिर उन्होंने कोलकाता में जाकर उसे प्रसिद्ध बना दिया।
रसगुल्ला को मिला ‘GI टैग’।
वर्ष 2015 में पश्चिम बंगाल सरकार ने रसगुल्ला के बंगाली रूप ‘बंगलार रसगुल्ला’ के लिए ‘GI Tag’ प्राप्त करने के लिए ‘GI रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ में आवेदन किया जिसे विभाग द्वारा स्वीकार कर लिए गया और 14 नवंबर 2017 पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले के बंगाली रूप ‘बंगलार रसगुल्ला’ के लिए ‘GI Tag’ प्रदान कर दिया गया।
इसके उपरांत वर्ष 2018 में ओडिशा सरकार द्वारा भी ‘GI Tag’ प्राप्त करने के लिए आवेदन किये गए जिसे विभाग द्वारा स्वीकार कर लिया गया और 29 जुलाई 2019 को ओडिशा राज्य को ‘ओडिशा रसगुल्ला’ के लिए ‘GI Tag’ प्रदान कर दिया गया। ओडिशा में रसगुल्ला पर अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के कैंपेन चलाये गए थे। ओडिशा के प्रसिद्ध सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने भी इससे जुड़े कलाकृतियों को ‘पुरी बीच’ पर बनाया था। ओडिशा में प्रत्येक वर्ष मनाये जाने वाले त्यौहार ‘नीलाद्रि बिजे’ के दिन ‘रसगुल्ला दिवस’ भी मनाया जाता है।