नागपंचमी एक ऐसा त्योहार जिसमे नागों/सर्पों की पूजा की जाती है। अन्य देशों के लोगों को यह सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है कि भारत में नागों की पूजा क्यों की जाती है? पर हमे यह बिलकुल भी अजीब नहीं लगता क्यूँकि हम अपने बचपन से नागपंचमी की पूजा देखते आ रहे हैं और इस दिन खूब मौजमस्ती भी करते आ रहे हैं लेकिन यहाँ एक प्रश्न उठना बहुत ही लाजिमी है कि जब दुनिया में हर किसी घटना या तथ्य के पीछे कोई ना कोई कारण होता है तो नागपंचमी पूजा मनाने के पीछे क्या कारण हो सकता है, क्यों हम प्रत्येक वर्ष नागपंचमी पूजा मनाते हैं? तो आज हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर क्यों भारत में नागपंचमी पूजा के दिन नागों की पूजा की जाती हैं?
नागपंचमी क्यों मनाया जाता है:
भारतीय इतिहास में नागपंचमी पूजा मनाने से सम्बंधित कई कहानियों का विवरण मिलता है लेकिन सबसे लोकप्रिय और प्रचलित कहानी का विवरण हमे महाभारत काल में मिलता है जिसके अनुसार वैदिक काल में कुरु राज्य के राजा जन्मेजय के शासनकाल में उनके पिता परीक्षित की मृत्यु नागराज तक्षक के काटने से हो गई थी। पिता की मृत्यु के उपरांत नाराज राजा जन्मेजय ने एक यज्ञ करवाना शुरू कर दिया जिसमे एक बड़े से अग्निकुंड में दुनियाभर के सापों को मंत्रों के द्वारा खींचकर जलाया जाने लगा। यह दृश्य देखकर पूरी दुनिया में हाहाकार मच गया कि यदि इसे रोका नहीं गया तो सापों के वंशों का अंत हो जाएगा।
दुनिया भर के सर्प आकर उस अग्निकुंड में समाने लगे और जलकर भष्म होने लगे लेकिन नागराज तक्षक जिसने कि जन्मेजय के पिता परीक्षित को काटा था वह भगवान् इंद्र के सिंहासन के चारों तरफ कुंडली मार कर बैठ गया था और अग्निकुंड की तरफ नहीं जा रहा था जिसे देख यज्ञ कर रहे ऋषियों ने अपने मंत्रों की शक्ति को और बढ़ा दिया जिससे तक्षक सहित इंद्र भी उस अग्निकुंड की तरफ बढ़ने लगे। यह दृश्य देखकर देवी-देवताओं में हताशा की स्थिति उत्पन्न हो गई और वे सर्पों की देवी मनसादेवी से इस स्थिति को सँभालने के लिए विनय-विनती करने लगे जिसके उपरांत मनसादेवी ने अपने पुत्र आस्तिक को इस समस्या का हल निकालने के लिए भेजा।
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जहाँ इस यज्ञ का आयोजन किया जा रहा था आस्तिक वहां पहुंचे और उन्होंने राजा जन्मेजय के साथ बात करना शुरू किया बातों-बातों में आस्तिक ने राजा को अपने शास्त्र ज्ञान से अभिभूत कर दिया। आस्तिक के शास्त्र ज्ञान से प्रभावित होकर जन्मेजय ने उनसे कुछ दक्षिणा स्वरुप मांगने के लिए कहा तब आस्तिक ने उनसे करवाए जा रहे इस यज्ञ को बंद करवा देने के लिए कहा। अब चूंकि राजा जन्मेजय आस्तिक को दक्षिणास्वरूप कुछ देने के लिए वचन दे चुके थे इसलिए उन्हें आस्तिक की बात माननी पड़ी और उन्होंने उस यज्ञ को बंद करवा दिया। जिस दिन इस यज्ञ को बंद करवाया गया उस दिन सावन माह के शुक्ल पक्ष का पंचमी था और उसी दिन से पुरे देश में नागपंचमी की पूजा की जाने लगी।
एक अन्य कहानी:
एक बार एक किसान के दो लड़के थे। उनमे से एक लड़का अपना खेत जोत रहा था जहाँ गलती से उसने एक नागिन के दो बच्चों को मार दिया जिससे वह नागिन बहुत नाराज हो गई और उसी दिन रात के समय जब किसान का पूरा परिवार गहरी नींद में था तब उसने किसान उसकी पत्नी और उसके दोनों बेटों को काट दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
अगले दिन सुबह उस किसान की एक बेटी जिसे कि नागिन ने नहीं काटा था, वह अपने माता-पिता और भाइयों के इस स्थिति को देखकर रोने लगी और उस नागिन से उन्हें वापस जिन्दा कर देने के लिए गुहार लगाने लगी। किसान की बेटी की गुहार सुनकर नागिन ने किसान और उसके परिवार को फिर से जीवित कर दिया जिससे खुश होकर उस लड़की ने नागिन को चांदी के कटोरे में दूध पिलाया और तभी से नागपंचमी का त्यौहार पुरे देश में मनाया जाने लगा।
नागपंचमी पूजा:
भारत, नेपाल सहित दुनिया के अन्य देश जहाँ हिन्दू धर्म के लोग रहते हैं वहां नागपंचमी की पूजा की जाती है। नागपंचमी प्रत्येक वर्ष हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग नागों के विभिन्न मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं। कुछ लोग नागों के मूर्तियों, तस्वीरों इत्यादि पर दूध और धान का लावा चढ़ाकर पूजा करते हैं। बहुत से लोग सपेरों के माध्यम से वास्तविक सापों को दूध पिलाते हैं तथा उन्हें कुछ दान भी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सापों की पूजा करने से हमे उनका आशीर्वाद मिलता है।