संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमला किया गया था जिसमे लगभग कुल 3,50,000 लोगों की मौत हो गई थी। अब तक यह दुनिया का पहला और आखिरी परमाणु हमला है जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था। लेकिन क्या आपको पता है, दुनिया में इससे भी ज्यादा बड़ा और खतरनाक बम बना था, जो परमाणु बम से भी कहीं ज्यादा विध्वंसक और खतरनाक था। जी हाँ, उस बम का नाम था जार बम अर्थात “सभी बमों का राजा”। दरअसल रूस में राजा को जार कहा जाता है और यह बम रूस के द्वारा ही बनाया गया था।
क्यों बनाया गया था जार बम (Tsar Bomba)?
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1947 से सोवियत रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर शुरू हो गया था। इस कोल्ड वॉर में दोनों देश एक दूसरे को अपनी-अपनी शक्तियां दिखाने के लिए तरह-तरह के हथियार बनाकर उनका टेस्ट कर रहे थे। इस क्रम में सोवियत रूस, अमेरिका से पिछड़ गया था और वह अमेरिका को अपनी शक्ति दिखाने के लिए सबसे बड़े और सबसे खतरनाक बम पर कार्य करना शुरू कर दिया जो कि परमाणु बम से भी खतरनाक था और इस तरह इसका नाम रखा गया “जार बम”।
Model of Tsar Bomba (Photo credit: Wikipedia) |
क्या हुआ जार बम (Tsar Bomba) के साथ?
रूस के द्वारा जार बम का निर्माण तो कर दिया गया था लेकिन यह एक अत्यधिक खतरनाक बम बन गया था इसलिए रूस ने इसका प्रयोग करना उचित नहीं समझा। बम बनाने वाले वैज्ञानिकों ने सोचा यदि इस बम का प्रयोग किसी देश के खिलाफ किया गया तो यह मानव जाति के लिए अत्यंत विध्वंसक साबित होगा और भयंकर तबाही मचाएगा। अतः रूस ने इस बम का टेस्ट कर नष्ट करना ही उचित समझा और 30 अक्टूबर 1961 को इसे आर्कटिक महासागर के सुखोई नॉश में टेस्ट कर समाप्त कर दिया गया।
कैसे हुआ जार बम (Tsar Bomba) का टेस्ट?
जार बम का वजन लगभग 27 मीट्रिक टन (27,000 किलोग्राम) था। यह 8 मीटर लम्बा और 2.1 मीटर चौड़ा था। चूंकि इसका वजन और आकार बहुत बड़ा था इसलिए इसे किसी विमान में रख कर नहीं ले जाया जा सकता था। अतः इसके टेस्ट के लिए एक स्पेशल विमान Tu-95V को डिज़ाइन किया गया और पूरे टेस्ट की निगरानी तथा पूरी घटना का वीडियो बनाने के लिए एक दूसरे विमान Tu-16 को डिज़ाइन किया गया। इन दोनों विमानों को स्पेशल रिफ्लेक्टिव व्हाइट पेंट से रंगा गया ताकि विमानों पर इस बम से निकले रेडिएशन का खतरा कम से कम हो सके। एक 800 किलोग्राम और 16,000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का पैराशूट भी तैयार किया गया जिसके द्वारा बम को आसानी से डेटोनेट किया जा सके। इतने सारे उपाय किये जाने के बाद भी इन विमानों के सुरक्षित बचने के चांस 50% ही थे।
30 अक्टूबर 1961 को बम, सुखोई नॉश, आर्कटिक महासागर में ले जाया गया। मॉस्को के समयानुसार दिन के 11:30 बजे इसे 10 किलोमीटर की ऊंचाई से रिलीज़ कर डेटोनेट किया गया। बम के विस्फोट होने तक विमान Tu-95V वहां से 115 किलोमीटर दूर और विमान Tu-16 वहां से 205 किलोमीटर दूर चले गए थे फिर भी विस्फोट के बाद उन विमानों पर जोर का झटका लगा। विमान Tu-95V तो लगभग 1 किलोमीटर तक अनियंत्रित होकर उड़ता रहा लेकिन बाद में उसे नियंत्रित कर लिया गया। बम के विस्फोट के बाद लगभग 65 किलोमीटर ऊंचाई तक उसका मशरूम आकार बना था और सैकड़ों किलोमीटर दूर तक इसका प्रभाव पड़ा। यह नजारा हजारों किलोमीटर दूर तक दिखाई भी दिया था।
Mashroom Cloud of Tsar Bomba (Photo credit: Wikipedia) |
जार बम से सम्बंधित अन्य पहलू-
- जार बम बनाने वाले वैज्ञानिक Andrei Sakharov इस टेस्ट के बाद न्यूक्लियर बम के परिक्षण के विरुद्ध हो गए और वे इसके खिलाफ तरह-तरह के कैंपेन चलाये जिस कारण 1975 में उन्हें शान्ति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
- इस परिक्षण का पता अमेरिका को चल गया था क्यूंकि परिक्षण के समय उसी क्षेत्र में अमेरिका का एक जासूसी विमान घूम रहा था।
- जार बम पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म “Trinity and Beyond: The Atomic Bomb Movie” भी बनी थी।
- इस बम को “Kuzma’s Mother” भी बोला गया अर्थात “हम तुम्हे दिखा देंगे”।