हमे बहुत ही छोटे उम्र से पढ़ाया जाता है कि हमारे पूर्वजों को आदिमानव कहा जाता था। फिर आदिमानव ही धीरे-धीरे विकसित होते-होते आज महामानव के रूप में दिख रहे हैं। हजारों-लाखों वर्षों की इस यात्रा के बाद आज आदिमानव महामानव बन चुका है जो कुछ भी कर सकता है। यह मानव अनेक आधुनिक सुविधाओं से लैश है। यह मानव समुद्र के भीतर जा सकता है, आसमान की ऊंचाइयों को चीरते हुए चाँद के साथ-साथ अन्य दूसरे ग्रहों पर जा सकता है। यह अपनी उँगलियों के इशारों से अपना हर एक काम मिनटों में पूरा कर सकता है।
लेकिन इसके विपरीत इसी पृथ्वी पर कुछ ऐसे भी लोग अथवा समुदाय हैं जो आज भी हजारों-लाखों सालों पहले की जीवन पद्धति के आधार पर ही अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। वे आज भी उन्ही पुरातन सुख-सुविधाओं के भरोसे हैं जिनके भरोसे हजारों वर्षों पहले आदिमानव रहा करते थे। अब इनके विकसित ना हो पाने के पीछे क्या कारण हैं इसके बारे में तो यहाँ चर्चा करना असंभव है परन्तु इनकी जीवन शैली के बारे में हम जरूर चर्चा करेंगे। आज हम बात करने जा रहे हैं ‘मन्दारी समुदाय’ के बारे में जो अफ्रीका महाद्वीप में रहती है।
मन्दारी समुदाय:
यह समुदाय अफ्रीका महाद्वीप के एक छोटे से देश दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा के उत्तर दिशा में करीब 75 किलोमीटर की दूरी पर निवास करती है। यह समुदाय अत्यंत ही पिछड़ी समुदाय है। हालाँकि दक्षिण सूडान भी पूरी दुनिया में प्रत्येक सुख-सुविधाओं के मामले में सबसे निचले पायदान पर स्थित है। देश के इस स्थिति के कारण ही यह समुदाय भी अत्यंत पीछे छूट गई है।
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मन्दारी समुदाय की संस्कृति:
मन्दारी समुदाय के लोगों का जीवन पूरी तरह जानवरों पर आधारित है, विशेषतः गायों पर। उनकी पूरी दिनचर्या गायों के साथ ही शुरू होती है और गायों के साथ ही समाप्त होती है। मन्दारी समुदाय के जीवन का प्रत्येक भाग गायों के बिना सम्भव नहीं है। इस समुदाय में सबसे ताकतवर वही माना जाता है जिसके पास सबसे अधिक गाय होती हैं। यदि किसी नौजवान के पास गायें नहीं हैं तो उसका विवाह भी संभव नहीं है।
गाय के मूत्र से स्नान:
कहा जाता है कि पृथ्वी के जिस भाग में जिस प्राकृतिक वस्तु की उपलब्धता अत्यधिक होती है वही वहां के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है। ठीक कुछ ऐसी ही स्थिति मन्दारी समुदाय के साथ भी है। चूंकि दक्षिण सूडान एक सूखा देश है जहाँ बरसात की बहुत अधिक कमी है। अतः लोगों के द्वारा अपना जीवन यापन करने के लिए जल के अन्य स्रोतों का प्रयोग किया जाता है। इसी क्रम में मन्दारी लोग गायों के मूत्र को अपने दिनचर्या में शामिल कर लिए हैं। वे गौमूत्र से स्नान करते हैं। इसे जल के रूप में धारण करते हैं। गौमूत्र उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
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गायों की रक्षा:
चूंकि इस समुदाय के लोग गाय के दूध, मूत्र और गोबर का अपने जीवन में सबसे अधिक प्रयोग करते हैं, अतः वे गायों की रक्षा अपने जान पर खेलकर करते हैं। इनके पास पीने के लिए पानी तो नहीं है परन्तु गायों की रक्षा करने के लिए मशीनगन है। ये ए.के 47 की मदद से अपनी गायों की रक्षा करते हैं। क्यूंकि गायें ही इनके मान-सम्मान की सबसे बड़ी निशानी है।