उस माँ-बाप और भाइयों पर क्या बीत रही होगी जिसके घर की बेटी का रेप हो जाए और उसके बाद मौत होने पर बेटी का अंतिम दर्शन भी दुर्लभ हो जाये। जो परिवार पहले बेटी के साथ हुए ऐसे व्यवहार को ही सहन नहीं कर पा रहा था अब उसके साथ और अधिक अन्याय के पहाड़ टूट गए कि उन्हें बेटी के अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हुए। हाथरस पीड़िता के दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में हुए मौत के बाद पुलिस द्वारा शव का पोस्टमार्टम कराकर शव परिवार को सौपने के बजाय खुद ही अंतिम संस्कार कर देना पुलिस के वर्दी पर बहुत बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं।
पुलिस ने रात में ही किया अंतिम संस्कार
दरअसल पोस्टमार्टम के बाद जब परिवार वालों ने पीड़िता के शव की मांग की तो पुलिस द्वारा सुरक्षा का बहाना बनाकर उन्हें मना कर दिया गया और कहा गया कि शव हाथरस उनके घर पहुंचा दिया जाएगा। घरवाले अपने गाँव पहुंच कर शव को लेने का प्रयास करें उसके पहले ही पुलिस द्वारा रात के समय शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने शव देखने तक नहीं दिया। पुलिस द्वारा किया गया यह कृत्य अत्यंत अमानवीय है। हालांकि पुलिस कह रही है कि घरवालों के सामने ही शव का अंतिम संस्कार किया गया।
पुलिस पर उठ रहे सवाल
अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि वो कौन सी बात है जो पुलिस छुपाना चाह रही थी। आखिर पुलिस की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन लोगों ने सभी नियम कानून को ताक पर रखकर पीड़िता के परिवार वालों से उनका आखिरी हक़ तक छीन लिया। पुलिस पर पहले से ही आरोप लग रहे थे कि पीड़िता के होश में आने के बाद पुलिस ने मामले में रेप की धारा लगाई थी उसके पहले पुलिस उतनी सक्रिय भी नही थी और आरोपी स्वतंत्र घूम रहे थे।
विपक्ष भी हुआ हमलावर
विपक्ष भी सरकार के साथ-साथ पुलिस पर कड़े आरोप लगा रही है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था चौपट होने का नतीजा है हाथरस कांड। उनका आरोप है कि यदि पुलिस पहले से ही सक्रिय होती तो ऐसा मामला सामने नहीं आता। चौतरफा आलोचना से घिरी पुलिस ने अपनी नाक बचाने के चक्कर में शव का अंतिम संस्कार स्वयं कर दिया।
पीड़िता के भाई का बयान
पीड़िता के भाई ने भी पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि मेरी माँ को बहन बेहोशी के हालत में मिली थी उसके बाद जब हम पुलिस के पास गए तो पुलिस ने रिपोर्ट लिखने के बजाय कहा कि ये लड़की बेहोश नहीं है बल्कि बहाना बनाकर सो रही है। पीड़िता के भाई ने आगे कहा कि रेप में आरोपियों द्वारा बहन के जीभ काट दिए गए थे, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई थी, लेकिन पुलिस यह सब कुछ मानने से इंकार कर रही है और कह रही है कि पीड़िता की जीभ नहीं कटी थी और मीडिया में इससे जुड़ी जो भी खबरे हैं सब भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रही हैं।
एक माँ का दर्द
पीड़िता का शव ना मिलने पर उसकी माँ ने स्थानीय सांसद के समक्ष अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि क्या हमे दलित होने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है? क्यों मेरी बेटी का चेहरा तक नहीं देखने दिया गया? क्या डीएम या एसपी साहब की बेटी के साथ ऐसा होता तो वे लोग ये सब स्वीकार कर पाते? पीड़िता के माँ के और ना जाने कितने सवाल हैं जिनका पुलिस या प्रशासन के पास कोई जबाब नहीं है।
प्रधानमंत्री का दखल और SIT का गठन
हाथरस मामले के देश भर में तूल पकड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस बारे में बात की और जल्द से जल्द पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने को कहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर बताया कि मामले के जाँच के लिए तीन सदस्यीय SIT गठित कर दी गई है और जल्द से जल्द फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाकर दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जायेगी।
क्या SIT और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट इसका स्थाई हल है?
मुख्यमंत्री द्वारा गठित SIT के जाँच और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुक़दमे के बाद अगर आरोपियों को सजा मिल भी जाती है तो क्या यह समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी? यह समस्या तब तक नहीं समाप्त होगी जब तक कि इसका कोई स्थाई हल नहीं निकाला जाता। सरकार के पास तरह-तरह के कानून बनाने के अधिकार है। सरकार को चाहिए कि वह अपने उन अधिकारों का सकारात्मक उपयोग करें और कुछ ऐसे कानून पारित करें जिससे कोई रेप जैसी घिनौनी हरकत के बारे में सोचने से भी डरे।