Home अपना देश उत्सव असम में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार (Festivals of Assam).

असम में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार (Festivals of Assam).

भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है लेकिन भारत ऐसे ही त्योहारों का देश नहीं बन गया है। इस देश के सभी राज्यों में मनाए जाने वाले अलग-अलग रंग-बिरंगे खुशियां बिखेरते त्योहारों ने ही इसे विश्व पटल पर अलग पहचान बनाने में मदद की है। इसी क्रम में आईये हम जानते हैं कि भारत के उत्तर-पूर्व में बसे अत्यंत खूबसूरत राज्य असम में कौन-कौन से त्योहार मनाए जाते हैं जो दुनिया भर के पर्यटकों के साथ-साथ सभी भारतीय पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। 

1- बिहू (Bihu):

वैसे तो असम राज्य में बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं परन्तु बिहू के बिना असम राज्य में मनाए जाने वाले त्योहारों की चर्चा अधूरी ही रहेगी। बिहू असम राज्य का सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध त्योहार है इसी कारण इसे राज्य के राजकीय त्योहार का दर्जा भी प्राप्त हुआ है। यह त्योहार तीन अलग-अलग नामों से अलग-अलग समय पर मनाया जाता है।

बोहाग अथवा रोंगाली बिहू (Bohag or Rongali Bihu):

यह भी बिहू त्योहार का ही भाग है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह बिहू त्योहार के सभी रूपों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। बोहाग बिहू प्रत्येक वर्ष अप्रैल महीने में मनाया जाता है तथा इसी के साथ असामी वर्ष की शुरुआत भी हो जाती है। इस त्योहार के पहले दिन सभी लोग अपने-अपने गायों को स्नान कराते हैं जिसे गोरु बिहू के नाम से जाना जाता है। इसके अगले दिन मनु बिहू होता है अर्थ सभी लोग स्नान करते हैं और नए-नए कपड़े पहनकर त्योहार मनाते हैं।

काती अथवा कोंगाली बिहू (Kati or Kongali Bihu):

यह त्योहार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के पहले दिन मनाया जाता है। इसलिए इसे काती बिहू के नाम से जाना जाता है। चूंकि इस वक्त किसानों के पास बहुत ही कम मात्रा में अनाज होता है तथा किसान इस समय कंगाली की स्थिति में होता है इसलिए इसे कोंगाली बिहू भी कहा जाता है। काती बिहू के समय असम राज्य के खेतों में धान की फसल लगी होती है और पकने के कगार पर होती है। अतः फसल भलीभातिं तैयार हो जाए तथा सकुशल किसानों के घरों तक पहुँच जाए इसी उम्मीद में काती बिहू त्योहार मनाया जाता है और ईश्वर से अच्छी फसल देने के लिए प्रार्थना की जाती है।

इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों के प्रत्येक भाग में मिट्टी के दिए जलाकर रखते हैं। सभी घरों में तुलसी के पौधे के पास दिए जरूर रखे जाते हैं। धान की फसल को बचाने तथा उसकी रक्षा के लिए धान के खेतों में भी मिट्टी के दिए जलाकर रखें जाते हैं। इस दिन घर की महिलाएं पीठा नामक भोज्य पदार्थ बनाती हैं। 

माघ बिहू अथवा भोगाली बिहू (Magh Bihu or Bhogali Bihu):

असम में मनाए जाने वाले तीनो बिहू त्योहारों में बोहाग बिहू के बाद यह दूसरे स्थान पर आता है। माघ बिहू अथवा भोगाली बिहू प्रत्येक वर्ष हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने तथा ग्रिगेरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी महीने में मनाया जाता है। इस त्योहार के एक दिन पहले ही सांय काल से इस त्योहार का जश्न प्रारम्भ हो जाता है।

माघ बिहू के पहली रात को उरुका के नाम से जाना जाता है। इस दिन सभी लोग समूह बनाकर घर से बाहर लकड़ियों और फसलों के अवशेषों से मेजी का निर्माण करते हैं जिसे बेलाघर के नाम से भी जाना जाता है। मेजी एक छोटा झोपड़ी होता है जहाँ रात भर लोग खाते-पीते हैं और नाच-गाना करते हैं। अगले दिन सुबह नदी में स्नान करने के बाद उस मेजी को जला दिया जाता है तथा मेजी के बचे अवशेषों को लोग अपने-अपने साथ लेकर जाते हैं तथा अपने-अपने खेतों में अच्छी फसल होने की उम्मीद से डाल देते हैं।

अगले दिन लोग विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के स्थानीय खेल स्पर्धाओं जैसे मुर्गों को लड़ाना, भैंसों को लड़ाना, चिड़ियों को लड़ाना इत्यादि का आयोजन करते हैं।

2- अम्बुबाची मेला (Ambubachi Festival):

असम में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों और उत्सवों में इसका स्थान सर्वोच्च है। अम्बुबाची मेला एक वार्षिक मेला है जो प्रत्येक वर्ष जून महीने के मध्य में असम के कामाख्या मंदिर में मनाया जाता है। कामाख्या मंदिर का सम्बम्ध देवी कामाख्या से है जिनके योनि रूप की पूजा यहाँ की जाती है।

ऐसा विश्वास है कि प्रत्येक वर्ष अम्बुबाची मेला के समय माँ कामाख्या मंदिर में माँ के दर्शन हेतु पुरे भारत से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं। इन श्रद्धालुओं में साधु, संत, तांत्रिक सहित अन्य लोग भी शामिल होते हैं। अम्बुबाची मेला के दौरान यह मंदिर तीन दिनों तक बंद रहता है तथा तीन बाद जब मंदिर का द्वार खुलता है तब ही सभी श्रद्धालु माता के दर्शन कर पाते हैं।

इस मेला को अमेटी अथवा तांत्रिक मेला भी कहा जाता है क्यूंकि इस मेले में तांत्रिकों का जमवाड़ा लगा रहता है तथा तांत्रिक अपने तंत्र विद्या का भरपूर प्रयोग करते हैं।

3- माजुली फेस्टिवल (Majuli Festival):

असम में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में माजुली फेस्टिवल भी सबसे ख़ास है। माजुली, असम राज्य के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी से तक़रीबन 350 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में जोरहाट टाउन के पास स्थित है। यह ब्रह्मपुत्र नदी पर बना दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है। हाल ही में माजुली को असम राज्य के एक जिले के रूप में मान्यता मिली है।

इसी द्वीप पर प्रत्येक वर्ष नवंबर माह में 21 तारीख से 24 तारीख के बीच माजुली फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। यह एक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमे माजुली द्वीप के जनजातीय लोगों के साथ-साथ पुरे असम राज्य के लोग शामिल होते हैं। इस फेस्टिवल में तरह-तरह के सांस्कृतिक विधाओं का मंचन किया जाता है। माजुली फेस्टिवल में विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय उत्पादों को भी बिक्री के लिए रखा जाता है।

माजुली फेस्टिवल का इतिहास बहुत पुराना है जो लगभग 16 वीं शताब्दी से यहाँ के जनजातीय लोगों द्वारा मनाया जा रहा है। यहाँ हड़प्पन युग में बनाए जाने वाले बर्तनों के सामान ही मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं जिनका माजुली फेस्टिवल में विशेष आकर्षण होता है।

4- दिहिंग पटकाई फेस्टिवल (Dehing Patkai Festival):

यह फेस्टिवल भी असम राज्य के प्रमुख उत्सवों में से एक है। दिहिंग पटकाई फेस्टिवल असम राज्य के तिनसुकिया जिले के लेखापानी टाउन में मनाया जाता है। यह फेस्टिवल प्रत्येक वर्ष जनवरी माह के 16 तारीख से 19 तारीख के बीच बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। इस फेस्टिवल का नाम दिहिंग नदी तथा पटकाई पर्वत श्रेणी के नाम पर रखा गया है।

दिहिंग पटकाई फेस्टिवल सबसे पहली बार वर्ष 2000 में असम सरकार द्वारा आयोजित किया गया था जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम शामिल हुए थे। अपने प्रथम आयोजन के उपरांत से ही यह फेस्टिवल प्रत्येक वर्ष असम सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है। इस फेस्टवियल में असम राज्य की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शनियों के माध्यम से पर्यटकों को दिखाया जाता है।

इस फेस्टिवल में आने वाले पर्यटकों को चाय-बागान के साथ-साथ डिगबोई आयल रिफाइनरी का भी टूर करवाया जाता है। यह फेस्टिवल लोगों को हाथियों के संरक्षण के बारे में जागरूक करता है। लोग हाथियों पर बैठकर यहाँ की सुंदरता का लुत्फ़ उठाते हैं। यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की कब्रें भी हैं जहाँ टूरिस्ट जाना पसंद करते हैं।

5- बैशागु उत्सव (Baishagu or Bwisagu Festival):

यह उत्सव असम राज्य के बोडो जनजातीय समूह द्वारा मनाया जाता है। इसे बैशागु अथवा ब्वीसागु उत्सव के नाम से जाना जाता है। बैशागु अथवा ब्वीसागु उत्सव प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह के बीच मनाया जाता है। दरअसल अप्रैल माह के मध्य से असामी नववर्ष शुरू होता है और नववर्ष के अवसर पर ही बैशागु फेस्टिवल मनाया जाता है।

इस त्योहार में बोडो जनजातीय समूह के लोग अपने इष्टदेव भगवान् शिव की पूजा अर्चना करते हैं। यह त्योहार कई दिनों तक मनाया जाता है जिसमे पहले दिन घर के जानवरों को स्नान करवाया जाता है। घर के सभी युवा सदस्य अपने बड़े-बुजुर्गों का पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन भगवान् शिव को ‘चिकन और जो (Chicken & Zou)’ का भोग लगाया जाता है। जो ‘Zou’ एक प्रकार का चावल से बनने वाला बियर हैं।

बैशागु फेस्टिवल में बगुरुम्बा नामक सांस्कृतिक नृत्य भी आयोजित किया जाता है। इस नृत्य के द्वारा बोडो जनजातीय समूह के लोग अपने इष्टदेव भगवान् शिव जिन्हे बथाऊ के नाम से जाना जाता है को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। बोडो जनजाति की लड़कियां तितली नृत्य करती हैं तथा युवा लड़के सरजा, सिफुंग, ठरका नामक वाद्ययंत्र बजाते हैं।

6- करम पूजा (Karam Puja):

असम में मनाए जाने वाले त्योहारों में करम पूजा का भी एक विशेष स्थान है। यह फसलों से जुड़ा एक त्योहार है। करम पूजा प्रत्येक वर्ष भादो माह के एकादशी के दिन मनाया जाता है जो कि ग्रीगेरियन कैलेंडर के अनुसार अगस्त माह के मध्य अथवा सितम्बर माह के शुरुआत में पड़ता है। यह त्योहार विशेषतः असम राज्य के चाय बागानों में काम करने वाले समुदाय के द्वारा मनाया जाता है।

इस त्योहार में चाय-समुदाय के लोग अपने इष्टदेव ‘करम’ की पूजा-अर्चना करते हैं तथा उनसे अच्छी फसल होने की कामना करते हैं। यह तीन दिनों तक चलने वाला त्योहार है। करम पूजा में कुंवारी लड़कियां तीन दिनों तक व्रत रहतीं हैं जिन्हे ‘करम नाचीज’ कहा जाता है। तीन दिन बीतने के उपरांत ढोल-बाजे के साथ ये सभी लोग जंगल में जाती हैं। जंगल में ढोल-बाजे के साथ झूमर नामक नृत्य किया जाता है।

वापसी में ये लोग जंगल से करम नामक पेड़ के कुछ टहनियों को घर लाते हैं तथा घर के आँगन में उसे लगा देते हैं। सभी लोग उसके चारो ओर बैठकर अपने सांस्कृतिक गीतों को गाते हैं तथा सभी पारम्परिक क्रियाकलापों का पालन करते हैं। पूजा संपन्न होने के उपरांत सभी लोग विभिन्न प्रकार के भोज का आनंद लेते हैं तथा ‘हरिया’ नामक पेय पदार्थ का भी सेवन करते हैं।

7- रास लीला (Ras Lila):

असम राज्य के माजुली द्वीप के निवासियों में भगवान् श्री कृष्ण के प्रति अपार श्रद्धाभाव है और उसी श्रद्धाभाव के कारण यहाँ प्रत्येक वर्ष रास लीला का आयोजन किया जाता है जिसे माजुली के रास लीला के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहाँ के सत्रों में रहने वाले वैष्णव लोग भगवान् श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े कथाओं का मंचन करते हैं जिसे देखने के लिए माजुली के साथ-साथ पुरे असम राज्य से लोग पहुँचते हैं।

यह रासलीला भगवान् श्री कृष्ण के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति को भी लोगों के सामने पेश करती है जिसे लोग बड़े प्रेमभाव से अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं।

8- चाय महोत्सव (Tea Festival):

असम राज्य पूरी दुनिया में अपने चाय के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ बहुत बड़े मात्रा में चाय का उत्पादन तो किया ही जाता है लेकिन इसके साथ ही साथ यहाँ पर दुनिया की सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन भी किया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए असम राज्य के पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रत्येक वर्ष के नवंबर माह में यहाँ ‘चाय महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है।

इस महोत्सव में दुनिया भर से चाय विज्ञानियों के साथ-साथ अनेक लोग शामिल होते हैं तथा इस महोत्सव की शोभा बढ़ाते हैं। चाय महोत्सव का मुख्य केंद्र असम राज्य का जोरहाट क्षेत्र होता है जहाँ पर चाय उत्पादन के बड़े क्षेत्र स्थित है। इस फेस्टिवल के दौरान तरह-तरह के प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाता है जहाँ चाय की कुछ बेहतरीन किस्मों को लोगों को समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

9- चोमांगकन और रोंगकार उत्सव (Chomangkan and Rongker Festival):

यह भी असम राज्य के त्योहारों में से एक है। यह त्योहार असम राज्य के कारबी एलॉन्ग जिले के साथ-साथ मेघालय के कुछ जिलों में भी मनाया जाता है। चोमांगकन और रोंगकार उत्सव फसलों से जुड़ा त्योहार है। इस त्योहार में कुछ क्षेत्रीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। इस त्योहार में कुल 12 देवताओं की पूजा की जाती है तथा उनके पूजा के लिए 10 वेदियों का निर्माण किया जाता है। इन वेदियों पर ही सभी देवताओं के लिए भोग लगाए जाते हैं।

इस त्योहार को मनाने का मुख्य आशय, अपने फसलों को ख़राब होने से बचाना तथा बड़े मात्रा में फसल प्राप्त करना है। चोमांगकन और रोंगकार उत्सव में लोग सभी बिमारियों से मुक्ति के लिए अपने इष्ट से प्रार्थना करते हैं। चूंकि यह फेस्टिवल प्रत्येक वर्ष फ़रवरी माह के आस-पास मनाया जाता है लेकिन सभी गाँवों के लोग अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग दिनों पर इस त्योहार को मनाते हैं।

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