कहा जाता है कि ‘अगर दिल में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो इस दुनिया की कोई भी ताकत आपको पीछे नहीं हटा सकती है’ दुनिया के लिए यह महज एक वाक्य हो सकता है पर कुछ कर गुजरने वाले सूरवीरों के लिए यह वाक्य अपनी मंजिल पाने की कुंजी से कम नहीं है। इसी कथन को अपने जीवन में ढाल-कर ना जाने कितने लोगों ने अपने मंजिल को अपने भुजाओं में समेटा है और कई सारे अपने मंजिल के तरफ बढ़ भी रहे हैं। चलिए, आज बात करते हैं ऐसे ही एक महान आत्मा के बारे में जिन्होंने अपनी कमजोरी को कभी भी अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया और वो कर दिखाया जो एक आम व्यक्ति के सपने में भी पूरा नहीं हो सकता।
श्रीकांत बोला (Shrikanth Bolla):
श्रीकांत बोला का जन्म आंध्र प्रदेश राज्य के मछलीपट्नम के सीतारामपुरम में हुआ था। श्रीकांत जन्म से अंधे थे। श्रीकांत का जन्म सीतारामपुरम के एक किसान परिवार में हुआ था। श्रीकांत दुनिया को देख पाने में सक्षम नहीं थे परन्तु उन्होंने दुनिया को बहुत अच्छे से समझ लिया था। श्रीकांत बचपन से ही महत्वाकांक्षी थे। वे अपने हक़ को कैसे हासिल करना है बखूबी जानते थे।
श्रीकांत ने जब 10वीं की परीक्षा पास कर ली तब इंटरमीडिएट की परीक्षा में विज्ञान विषय लेकर पढाई करना चाहते थे परन्तु विद्यालय को यह कत्तई मंजूर नहीं था। विद्यालय का डर स्वाभाविक भी था कि सम्भवतः श्रीकांत लैब में किसी रासायनिक प्रक्रिया में स्वयं को नुकसान पहुंचा सकते है। श्रीकांत रुकने वाले नहीं थे उन्होंने विज्ञान में एडमिशन ना देने वाले कॉलेज पर ही केस कर दिया।
करीब 6 माह के बाद उन्हें विज्ञान भाषा के साथ इंटरमीडिएट में पढ़ने के लिए एडमिशन दे दिया गया और शर्त रखा गया कि यदि कुछ अनहोनी होती है तो उसके जिम्मेदार वह स्वयं होंगे। श्रीकांत ने एडमिशन ले लिया और ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ने लगे। इंटरमीडिएट के बोर्ड एग्जाम को उन्होंने 98% नंबर के साथ पास किया और साथ ही साथ अपने स्कूल को भी टॉप किया।
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श्रीकांत ‘Indian Institute of Technology’ से इंजीनियरिंग करना चाहते थे परन्तु उन्हें कोचिंग इंस्टिट्यूट में एडमिशन ही नहीं मिला। इसके उपरांत उन्होंने अमेरिका के ‘मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ में एडमिशन लिया जहाँ ये पहले अंतर्राष्ट्रीय ब्लाइंड स्टूडेंट थे।
Bollant Industries:
श्रीकांत को अमेरिका में कई मौके मिल रहे थे परन्तु वह भारत वापस आकर कुछ अलग करना चाहते थे। अतः उन्होंने उद्योगपति रतन टाटा की मदद से वर्ष 2012 में Bollant Industries नामक एक कम्पनी की स्थापना की। इस कंपनी में उन्होंने में होने दिव्यांगों को रोजगार दिया और उन्हें आगे बढ़ने में मदद किया। अपने कठिन मेहनत और योग्यता के बल पर उन्होंने वर्ष 2018 तक इस कंपनी के टर्नओवर को 150 करोड़ तक पहुंचा दिया।
फोर्ब्स मैगज़ीन में शामिल:
अपनी योग्यता और अपने लक्ष्यों पर मजबूती से काम करते हुए आगे बढ़ने की उनकी क्षमता को देखते हुए फोर्ब्स मैगज़ीन द्वारा एशिया के ’30 Under 30′ लिस्ट में स्थान मिला। इस लिस्ट में शामिल होने वाले मात्र 3 भारतियों में से वे एक थे।