कहा जाता है कि आपके जीवन चरित्र के बारे में आधी जानकारी आपके रहन-सहन के तौर-तरीकों से मिल जाती है। अर्थात एक अच्छा रहन-सहन का आदमी भले गरीब हो सकता है लेकिन उसके कपड़े कभी गंदे-मैले नहीं हो सकते हैं बल्कि वह अपने पास उपलब्ध कपड़ों को ही इस प्रकार से धारण करता है कि वह बहुत प्रभावशाली दिखता है। उसी प्रकार से सभ्य व्यक्ति के पास चाहे जितने ही अभाव क्यों ना हो, वह थोड़े से मात्रा में मिल रहे सुविधाओं को इस तरह व्यवस्थित करके रखता है कि दुनिया के तमाम सुख-सुविधाओं से लैश व्यक्ति भी उसे देख अचंभित हो जाता है।
ऊपर के पैराग्राफ में साफ़-सफाई के बारे में उदाहरण इसीलिए बताये गए हैं क्यूंकि आज का विषय भी साफ़-सफाई से जुड़ा है। अर्थात आज हम एक ऐसे गाँव के बारे में बात करने जा रहे हैं जो भारत के अत्यंत ही सुदूर इलाके में बसा है और दुनिया की अनेक सुविधाओं से वंचित है। बावजूद इसके वहां के निवासियों ने ऐसी मिसाल कायम की है कि उनके बारे में पढ़ने वाला या जानने व्यक्ति एक बार जरूर चौंक जाएगा और उसके हृदय के किसी ना किसी कोने से एक मीठी से आवाज निकलेगी कि एक बार इस गाँव को देखने जरूर जाना चाहिए। तो चलिए आज हम बात करने जा रहे हैं ‘मावलिंगनोंग गाँव’ के बारे में।
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मावलिंगनोंग गाँव (Mawlynnong Village):
Mawlynnong Village
(Photo Credit: Wikipedia)
यह गाँव भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में से सबसे खूबसूरत राज्य मेघायलय के ‘ईस्ट खासी हिल्स’ जिले में स्थित है। यह गाँव मेघालय राज्य की राजधानी शिलॉन्ग से लगभग 90 किमी दूर भारत-बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है। वैसे तो यह गाँव मुख्य भारतीय सीमा क्षेत्र से अत्यंत दूर स्थित है परन्तु यहाँ के लोगों ने साफ़-सफाई के प्रति जो उत्साह दिखाया है और अपने उत्साह को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया है वह काबिल-ए-तारीफ है।
एशिया के सबसे खूबसूरत गाँव का ख़िताब:
इस गाँव को एशिया के सबसे खूबसूरत गाँव का ख़िताब वर्ष 2003 में मिल गया था और उसके उपरांत वर्ष 2005 में भारत के सबसे स्वच्छ गाँव का ख़िताब मिला था। यह ख़िताब एक ट्रेवल मैगज़ीन ‘डिस्कवर इंडिया’ के द्वारा दिया। मैगज़ीन द्वारा गाँव को यह ख़िताब दिए जाने के बाद गाँव में दुनिया भर के पर्यटकों की भीड़ बढ़ गई है। भारत सहित दुनिया भर से लोग यहाँ इस गाँव और यहाँ के लोगों के रहन-सहन को देखने पहुँचते हैं। गाँव के प्रमुख के अनुसार जब से इस गाँव के बारे में दुनिया भर में चर्चा हुई है तबसे यहाँ के लोगों की आय में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई है।
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गाँव की विशेषताएं:
इस गाँव को यदि यह ख़िताब मिला है तो इसमें सभी गाँव वालों ने संयुक्त प्रयास किया है। इस गाँव को यह प्रसिद्धि किसी एक व्यक्ति अथवा परिवार की वजह से नहीं मिली है। पुरे गाँव से निकलने वाले कचरे को बांस के बने डस्टबिन में इकठ्ठा किया जाता है तदुपरांत उसे एक जगह इकठ्ठा कर आर्गेनिक खाद में परिवर्तित कर दिया जाता है और उसे खेती के कार्य में प्रयोग किया जाता है। गांव में धूम्रपान और प्लास्टिक को बैन कर दिया गया है। जहाँ आज भारत में वाटर हार्वेस्टिंग के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना शुरू हुआ, वहीं इस गाँव के लोग वर्षों से वाटर हार्वेस्टिंग का प्रयोग करते आ रहे हैं।
मातृवंशीय प्रथा (Matrilineal Custom):
यह गाँव मात्र अपने साफ़-सफाई तक ही नहीं सीमित है बल्कि यह अपने विशेष मातृवंशीय प्रथा के लिए भी प्रसिद्ध है। हालाँकि मातृवंशीय प्रथा मेघालय राज्य के अधिकतर क्षेत्रों में प्रचलित है। इस व्यवस्था के अंतर्गत परिवार की मुखिया एक महिला होती है और उस महिला की संपत्ति उसकी सबसे छोटी बेटी को दे दी जाती है। संपत्ति प्राप्त करने के बाद भले ही उस बेटी की शादी कहीं और हो जाए लेकिन वह अपने माँ के ही घर में रहती है और उसके बच्चों को उसकी माँ का ही सरनेम मिलता है।
यह गाँव पूरी तरह प्रकृति के गोद में बसा है और यहाँ के निवासी ईश्वर द्वारा दिए गए इस उपहार को भलीभातिं सजों कर रखें हैं और उसे आगे बढ़ा रहे हैं।
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