भारतीय संस्कृति त्योहारों के अनुकूल है और हमे त्योहार बहुत पसंद भी है। हम सभी भारतीय पुरे साल कई त्योहार जैसे होली, दिवाली, दशहरा, ईद, क्रिसमस इत्यादि मनाते रहते हैं। ये कुछ ऐसे त्योहार हैं जिन्हे लगभग पुरे भारत में मनाया जाता है लेकिन इसके साथ-साथ भारत में ऐसे बहुत से क्षेत्रीय त्योहार भी हैं जिन्हे बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। आज हम बात करेंगे मुख्यतः तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मनाये जाने वाले त्योहार बतुकम्मा के बारे में।
बतुकम्मा त्योहार क्या होता है:
यह एक क्षेत्रीय त्योहार है जिसे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ही मनाया जाता है। इसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। यह विशेषतः हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस त्योहार के दिन सभी घरों के लोग जंगलों में जाते हैं और ढेर सारे फूल चुन कर लाते हैं जिनसे घर की महिलाएं सुन्दर-सुन्दर गोपुरम तैयार करतीं हैं और उसी की पूजा की जाती है।
बतुकम्मा का अर्थ क्या होता है:
बतुकम्मा अर्थात सभी ‘देवियों की माँ पार्वती’ को माना गया है। बतुकम्मा के रूप में देवी पार्वती की पूजा की जाती है। वहां के लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्योहार के दिन देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और इस दिन इनकी पूजा करने से लोगों की ख्वाहिशें पूरी होती हैं।
कब मनाया जाता है बतुकम्मा त्योहार:
यह त्योहार प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के समय लगभग सितम्बर-अक्टूबर महीने में मनाया जाता है। नवरात्रि के तरह ही यह भी 9 दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। वैसे तो इस त्योहार को सातवाहन कैलेंडर के आधार पर भाद्रपद महीने के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
बतुकम्मा पूजा की विधि:
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9 दिनों के इस पूजा के पहले दिन सभी लोग अपने आँगन में गाय के गोबर से छोटे-छोटे गोपुरम तैयार करते हैं फिर धीरे-धीरे उसे फूलों से सजाते रहते हैं। इस तरह अंतिम दिन तक यह बड़े गोपुरम के रूप में तैयार हो जाता है। पुरे 9 दिनों तक अलग-अलग क्षेत्रीय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। अंतिम दिन को विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं और लोग बड़े श्रद्धा के साथ इस त्योहार का आनंद लेते हैं।
इस त्योहार से सम्बंधित कहानियां:
इस त्योहार के शुरू होने के सम्बन्ध में कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमे से दो प्रमुख हैं।
पहली कहानी के अनुसार:
पहली कहानी के अनुसार जब देवी गौरी ने एक भयानक लड़ाई के बाद महिसासुर का वध किया था उसके उपरांत वह थकान के कारण गहरी निद्रा में चली गईं थी। अतः लोगों ने बहुत दिनों तक उनकी प्रार्थना की जिसके उपरांत वह दशमी के दिन अपने निद्रा से जगीं और उसी के उपरांत से इस दिन को बतुकम्मा के रूप में मनाया जाने लगा।
दूसरी कहानी के अनुसार:
बतुकम्मा से सम्बंधित दूसरी कहानी के अनुसार चोल शासक धर्मांगद और उनकी पत्नी सत्यवती ने एक युद्ध में अपने 100 बेटों को खो दिया था। उसके उपरांत उन दोनों लोगों ने देवी लक्ष्मी से उनके घर में उनकी बेटी के रूप में जन्म लेने के लिए प्रार्थना किया जिसके उपरांत देवी ने उनके घर में उनकी पुत्री के रूप में जन्म भी लिया था। देवी के जन्म के उपरांत दूर-दूर से साधु-संत राजा के महल में पधारे और उन लोगों ने राजा की बेटी को देवी बतुकम्मा कहा। तभी से वहां प्रत्येक वर्ष देवी बतुकम्मा की पूजा बड़े धूम-धाम से की जाती है।