भारत के उत्तरी-पूर्वी भूभाग में बसे Seven Sister Sates में से एक त्रिपुरा राज्य भी है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला है। यह राज्य भी भारत के अन्य राज्यों के समान ही विभिन्नताओं से भरा हुआ है। तो आईये आज इस लेख में त्रिपुरा राज्य में मनाए जाने वाले त्योहारों (Festivals of Tripura) के बारे में जानते हैं।
1- गरिया पूजा (Garia Puja):
त्रिपुरा में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में गरिया पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। गरिया पूजा पुरे त्रिपुरा राज्य में मनाया जाता है। इस पूजा में बाबा गरिया की पूजा की जाती है। यह पूजा प्रत्येक वर्ष बैशाख महीने के सातवें दिन मनाया जाता है।
गरिया पूजा में बांस से बाबा गरिया की प्रतिमा बनाई जाती है। इस प्रतिमा को फूल-मालाओं से सुसज्जित किया जाता है। गरिया पूजा में चावल, रिचा (Riccha), चावल से बना बियर, शराब, मिटटी के बर्तन, सूती वस्त्र इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इस त्योहार में बाबा गरिया को प्रसन्न करने के लिए मुर्गे की बलि भी दी जाती है।
इस पूजा के दौरान कोई भी व्यक्ति बाबा गरिया की बांस की प्रतिमा की छाया को पार नहीं करता है। इस दिन ढोल-बाजे के साथ-साथ स्थानीय वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। लोग पारम्परिक गीत गाने के साथ-साथ नृत्य भी करते हैं।
2- अशोकाष्टमी या उनाकोटी (Ashokashtami or Unakoti Festival):
त्रिपुरा के अन्य त्योहारों के समान ही अशोकाष्टमी एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष फ़रवरी अथवा मार्च महीने में मनाया जाता है। अशोकाष्टमी त्योहार त्रिपुरा के उनाकोटी नामक स्थान पर मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस त्योहार का सम्बन्ध रामायण काल से है। अशोकाष्टमी त्योहार में देश-दुनिया से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं।
यहाँ स्थित अष्टमीकुंड और सीताकुंड में स्नान के साथ इस पूजा का आरम्भ होता है। हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु कुंड में स्नान करते हैं। वैसे तो यह त्योहार मुख्यतः हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है लेकिन दूसरे धर्म के लोग भी बड़ी संख्या में इस त्योहार में पहुँचते हैं। इस त्योहार के मौके पर यहाँ एक मेले का भी आयोजन किया जाता है।
3- पिलक महोत्सव (Pilak Festival):
त्रिपुरा राज्य के जोलाईबारी जिले के पिलक नामक स्थान पर प्रत्येक वर्ष पिलक महोत्सव का आयोजन किया जाता है। यह महोत्सव फ़रवरी से मार्च महीने के बीच मनाया जाता है। त्रिपुरा का पिलक हिन्दू और बौद्ध धर्म के इतिहास का साक्षी है। यहाँ अवलोकितेश्वर और नरसिम्हा की मूर्तिया प्राप्त हुईं थी। पिलक में 8वीं और 9वीं शताब्दी की हिन्दू और बौद्ध मूर्तियां प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं।
अपने इस ऐतिहासिक महत्व के कारण ही पिलक में प्रत्येक वर्ष इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
4- खर्ची पूजा (Kharchi Festival):
खर्ची पूजा त्रिपुरा के सभी त्योहारों में सबसे प्रमुख है। यह त्योहार 7 दिनों तक मनाया जाता है। इस त्योहार में त्रिपुरा के 14 इष्ट देवताओं की पूजा की जाती है। यह एक हिन्दू त्योहार है। इस त्योहार का आयोजन प्रत्येक वर्ष जुलाई माह में अगरतला के समीप ही किया जाता है।
इस त्योहार में विभिन्न स्थानीय भोज्य पदार्थों के साथ-साथ जानवरों की बलि भी दी जाती है। खर्ची पूजा में सभी 14 इष्ट देवताओं की पूजा के बाद उन्हें पास के सैदरा नदी में स्नान के लिए ले जाया जाता है। इस पूजा का सम्बन्ध पृथ्वी से भी है। ऐसा कहा जाता है कि इस पूजा के द्वारा पृथ्वी को शुद्ध किया जाता है।
इस पूजा के कुछ दिनों पहले से ही खेतों में जुताई सहित अन्य कार्य वर्जित होते हैं। खर्ची पूजा में त्रिपुरा के आदिवासियों के साथ-साथ अन्य सभी लोग भी शामिल होते हैं। यह त्रिपुरा का एक पारम्परिक शाही पूजा है।
5- नीरमहल महोत्सव (Neermahal Festival):
नीरमहल महोत्सव त्रिपुरा के प्रमुख महोत्सवों में से एक है। इस महोत्सव का आयोजन त्रिपुरा के राजा रहे बीर बिक्रम किशोर माणिक्य के द्वारा बनवाये गए रुद्रसागर झील में किया जाता है। नीरमहल महोत्सव प्रत्येक वर्ष अगस्त और दिसंबर माह में मनाया जाता है।
3 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश-दुनिया भर के पर्यटकों के लिए उत्साह का केंद्र रहता है। इस महोत्सव में विभिन्न प्रकार के बोटिंग रेस का आयोजन किया जाता है। नीरमहल महोत्सव में बोटिंग रेस के साथ-साथ तैराकी स्पर्धा का भी आयोजन किया जाता है।
नीरमहल महोत्सव को नीरमहल जल महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
6- दिवाली त्योहार (Diwali Festival):
त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में स्थित सुंदरी मंदिर में इस त्योहार का आयोजन किया जाता है। सुंदरी मंदिर भारत के 51 पीठों में से एक है। इस त्योहार में त्रिपुरा के आदिवासियों के साथ-साथ अन्य लोग भी शामिल होते हैं।
यहाँ स्थित पवित्र कुण्ड में स्नान के उपरांत लोग माता काली की पूजा अर्चना करते हैं। इस महोत्सव के दौरान यहाँ एक मेले का भी आयोजन किया जाता है जहाँ हजारों की संख्या में लोग पहुँचते हैं।
त्रिपुरा का यह दिवाली महोत्सव भारत के अन्य भागों के समान ही अक्टूबर-नवंबर माह में मनाया जाता है।
7- पौस अथवा तीर्थमुख मेला (Pous or Tirthmukh Mela):
त्रिपुरा के गोमती नदी के उद्गम स्थल तीर्थमुख पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में इस मेले का आयोजन किया जाता है जिसे पौस अथवा तीर्थमुख मेला कहा जाता है। इस मेले में त्रिपुरा के आदिवासी तथा गैर आदिवासी लोग बड़ी संख्या में पहुँचते हैं और गोमती नदी में पवित्र स्नान करते हैं।
इस मेले में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हुए अपना सिर मुड़वाते हैं। इस मेले का आयोजन 2 दिनों तक चलता है।
8- केर पूजा (Ker Puja):
त्रिपुरा के अन्य पूजा के तरह केर पूजा भी अतिमहत्वपूर्ण पूजा है। केर पूजा का आयोजन प्रत्येक वर्ष जुलाई-अगस्त माह में किया जाता है। इस पूजा का आयोजन खर्ची पूजा के 2 सप्ताह उपरांत किया जाता है। इस पूजा में इष्टदेव केर की पूजा की जाती है जो वास्तु देवता प्रमुख हैं। इस पूजा में त्रिपुरा के हलम आदिवासी समूह का शामिल होना आवश्यक है।
इस पूजा की शुरुआत त्रिपुरा के राजा द्वारा की गई थी। केर पूजा के दौरान राजधानी के प्रवेश द्वारों को बंद कर दिया जाता है। सभी लोगो के लिए जूते चप्पल ना पहनना अनिवार्य कर दिया जाता है। केर पूजा के दौरान आग जलाना, गीत गाना और नृत्य करना वर्जित होता है।