भारत को पुराने जमाने में सोने की चिड़ियाँ के नाम से जाना जाता था क्यूंकि यहाँ के रजवाड़ों-रियासतों में सोने-चाँदी की कोई कमी नहीं थी। राजा-महाराजाओं के साथ-साथ यहाँ के आम लोगों के घरों में भी मिटटी के घड़े में भर-भरकर सोने के सिक्के रखे जाते थे। उस समय को बीते सैकड़ों वर्ष हो चुके है परन्तु अभी भी उसकी झलक यहाँ दिखाई देती है। पुरे देश में अनेक राजाओं-महाराजाओं के द्वारा अनेक भव्य इमारतों-किलों का निर्माण करवाया गया है जिसके दर्शन के लिए देश-दुनिया से लाखों सैलानी प्रति वर्ष भारत आते हैं। अब ऐसे ही सैलानियों को पुरातन भारत के दिव्य दर्शन कराने हेतु भारत सरकार द्वारा कई लक्ज़री रेलगाड़ियों को चलाया जाता है। जिसके द्वारा सैलानी भारत दर्शन कर अत्यंत अभिभूत होते हैं। अतः आज के लेख में हम भारत के कुछ ऐसे ही अत्यंत लक्ज़री रेलगाड़ियों के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे।
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पैलेस ऑन व्हील:
‘पैलेस ऑन व्हील’ अर्थात ‘पहियों पर महल’ इस ट्रेन को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य भारत के अत्यंत संपन्न शासकों के जीवन शैली को एक ट्रेन यात्रा के माध्यम से दर्शाना था। इस ट्रेन को भारतीय शासकों के महलों, राजगद्दियों, आरामगाह इत्यादि के आधार पर ही डिज़ाइन किया गया है। सबसे पहले इस ट्रेन को 26 जनवरी 1982 में शुरू किया गया था। उसके उपरांत वर्ष 2009 में इसके स्वरुप में कुछ मूलभूत सुधार के उपरांत पुनः चलाया गया।
इस ट्रेन में कुल 23 कोच हैं। सभी कोचों के नाम राजस्थान के राजपुताना रियासतों के नाम पर रखें गए हैं जैसे कि जैसलमेर, जयपुर, अलवर, उदयपुर, किशनगढ़, कोटा, बीकानेर, भरतपुर इत्यादि। इस ट्रेन के सभी कोचों में पुरातन व्यवस्थाओं के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं जैसे कि वाईफाई, टीवी, इंटरनेट इत्यादि का भी समुचित इंतजाम है।
इस ट्रेन में दो रेस्टोरेंट भी है जिनका नाम “The Maharaja” और “The Maharani” है। यह ट्रेन नई दिल्ली से चलना प्रारम्भ करती है तथा राजस्थान के विभिन्न मुख्य शहरों जैसे जयपुर, जैसलमेर, चित्तौरगढ़, उदयपुर, भरतपुर तथा आगरा होते हुए वापस नई दिल्ली में अपनी यात्रा समाप्त करती है।
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महाराजा एक्सप्रेस:
जैसा कि नाम से ही आभास हो रहा है, यह ट्रेन वास्तव में महाराजाओं के दिनों की याद दिलाती है। इस ट्रेन के अनुपम विशेषताओं के कारण ही इसे लगातार वर्ष 2012 से 2018 तक “The World’s Leading Luxury Train” का सम्मान मिल चुका है। यह ट्रेन वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इसका संचालन सरकारी उपक्रम “Indian Railway Catering and Tourism Corporation Ltd.” द्वारा किया जाता है।
इस ट्रेन में 23 लक्ज़री कोच हैं। जिनमे लिविंग रूम के साथ-साथ, डाइनिंग हॉल, रेस्टोरेंट, बाथरूम, जनरेटर रूम इत्यादि हैं। सभी कोचों में वाईफाई की सुविधा, डायरेक्ट टेलीफोन, एलसीडी टीवी, जिम इत्यादि की व्यवस्था है। इस ट्रेन में एक बार में 84 मेहमानों के लिए ही रिजर्वेशन लिए जाते हैं।
यह ट्रेन देश के 4 रूटों पर सामान्यतः अक्टूबर से अप्रैल महीने तक चलती है। यह ट्रेन मुख्यतः राजस्थान राज्य का भ्रमण कराती है तथा इसके साथ-साथ मुंबई, लखनऊ, वाराणसी, आगरा, नई दिल्ली सहित उत्तर-पश्चिम भारत के अन्य प्रमुख शहरों का भी भ्रमण कराती है।
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डेक्कन ओडिसी:
राजस्थान राज्य में संचालित लक्ज़री ट्रेन “पैलेस ऑन व्हील” की सफलता के उपरांत महाराष्ट्र सरकार ने भी अपने राज्य के पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस ट्रेन को भारतीय रेलवे के साथ मिलकर शुरू किया था। इस ट्रेन को सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा हरी झंडी दिखाई गई थी।
यह ट्रेन 5 स्टार होटल के सुविधाओं से लैस है। इसमें 2 रेस्टोरेंट के साथ-साथ एक बार भी है। यह ट्रेन मुख्यतः महाराष्ट्र राज्य के मुख्य पर्यटन स्थलों का दर्शन करवाते हुए ताज नगरी आगरा तथा देश की राजधानी दिल्ली तक का सफर तय करती है। यह ट्रेन महाराष्ट्र में रत्नागिरी, कोल्हापुर तथा नासिक के साथ-साथ गोवा, तक का भी सफर तय करती है। इस ट्रेन में 40 डीलक्स केबिन, 4 प्रेसिडेंशियल सुइट, स्पा, जिम, मसाज पार्लर इत्यादि की व्यवस्था है।
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गोल्डन चेरियट:
इस ट्रेन को भी पैलेस ऑन व्हील की सफलता के उपरांत शुरू किया गया था। इस ट्रेन को शुरू करने के लिए कर्नाटक स्टेट टूरिज्म एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन तथा भारतीय रेलवे के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया। इस ट्रेन को 10 मार्च 2008 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के द्वारा हरी झंडी दिखाकर शुरू किया गया।
इस ट्रेन को कुसुम पेंडसे द्वारा डिज़ाइन किया गया है तथा इसे तैयार करने में करीब 200 कारपेंटरों सहित सैकड़ों इंजीनियरों ने काम किया था। इस ट्रेन को इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के द्वारा बनाया गया था। इस ट्रेन के सभी कोचों का नाम दक्षिण भारत के राजवंशों के नामों पर रखा गया है जैसे कि विजयनगर, सातवाहन, चालुक्य, राष्ट्रकूट, बादामी, संगम, आदिलशाही इत्यादि।
यह ट्रेन दक्षिण भारत के दर्शन कराने हेतु मुख्यतः दो मार्गों पर संचालित होती है जिसमे पहले मार्ग को “प्राइड ऑफ़ साउथ” तथा दूसरे मार्ग को “स्प्लेंडर ऑफ़ साउथ” नाम दिया गया है। “प्राइड ऑफ़ साउथ” मार्ग के अंतर्गत, बंगलुरु, मैसूर, हासन, हम्पी, गोवा सहित इत्यादि शहरों का दर्शन कराया जाता है जबकि “स्प्लेंडर ऑफ़ साउथ” के अंतर्गत यह कर्नाटक के साथ-साथ तमिलनाडु, केरल राज्यों के विभिन्न शहरों का दर्शन करवाया जाता है।
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फेयरी क़्वीन:
यह एक स्टीम इंजन पर चलने वाली ट्रेन है इसका निर्माण वर्ष 1855 में इंग्लैंड की एक कंपनी किटसन, थॉम्पसन और हेविट्सन द्वारा किया गया था और यह ट्रेन तब से लेकर अब तक अपने कार्य को भलीभातिं अंजाम दे रही है। इसीलिए इसे ‘गिनीज वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ में शामिल किया गया है। इस ट्रेन का निर्माण इंग्लैंड में ही हुआ था तथा उसके उपरांत इसे कोलकाता लाया गया। कोलकाता में यह ट्रेन सबसे पहले हावड़ा और रानीगंज रेलवे स्टेशनों के बीच में चलती थी।
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