Home अपना देश घोटुल व्यवस्था (Ghotul System): क्यों हैं बेहद ख़ास व्यवस्था।

घोटुल व्यवस्था (Ghotul System): क्यों हैं बेहद ख़ास व्यवस्था।

यह झूठ नहीं कहा जाता है कि भारत देश अनेक विविधताओं से भरा पड़ा है। यह देश क्षेत्रफल की दृष्टि से जितना बड़ा है उससे ज्यादा बड़ी यहाँ विविधताएं हैं। अपने देश के बारे में एक बड़ी ही पुरानी कहावत है कि “कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर बानी” अर्थात भारत के हर तीन किलोमीटर की दूरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर 12 किलोमीटर की दूरी पर बात करने का तरीका और लहजा बदल जाता है।

यह तथ्य एक कटु सत्य है जो भारत की विविधता को दर्शाता है। यहाँ शहरों में पढ़ने वाले बच्चे अंग्रेजी माध्यम में अपनी शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन में चार-चाँद लगाते हैं वहीँ ग्रामीण क्षेत्रो में शिक्षा ग्रहण वाले बच्चे हिंदी या क्षेत्रीय माध्यम में भी शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन में चार-चाँद लगाने में कामयाब हो जाते हैं। पर इसके साथ ही साथ भारत के कुछ ऐसे हिस्से भी हैं जहाँ के बच्चे किसी भी माध्यम के स्कूलों में नहीं पढ़ते हैं बल्कि उनके पुरखों द्वारा बनाये गए घोटुल में रहकर दुनिया की समझ हासिल कर अपने जीवन में चार-चाँद लगाते हैं। अब आप सोच रहें होंगे कि ये घोटुल किस बला का नाम है तो आपको बहुत सोचने की जरुरत नहीं चलिए आज आपको रूबरू करवाते हैं घोटुल से कि आखिर ये घोटुल क्या है?

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घोटुल क्या है?

Ghotul (Photo Credit: Outlookindia.com)

जिस प्रकार भारतीय पुरातन इतिहास में विद्यार्थियों के शिक्षा ग्रहण के लिए गुरुकुल होता था और वे वहां रहकर अपने गुरुओं के समक्ष शिक्षा ग्रहण करते थे ठीक उसी प्रकार घोटुल भी है जहाँ बच्चे जाकर शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ जीवन की सीख सीखने का प्रयास करते हैं। बस अंतर इतना है कि गुरुकुल में समृद्ध लोगों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने जाते थे जबकि उसके विपरीत घोटुल में आदिवासी अथवा जनजातियों के बच्चे जाते हैं।

कहाँ विद्यमान है घोटुल व्यवस्था:

घोटुल व्यवस्था सामान्यतः छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले सहित आंध्र-प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में प्रचलित है। इन जिलों में निवास करने वाले गोंड और मुरिया समुदाय के बच्चे अपने जीवन की सीख सीखने घोटुल में जाते हैं। इन समुदायों द्वारा अपने गाँव के बाहर बांस और अन्य लकड़ियों की मदद से कई झोपड़ियां तैयार की जाती हैं जहाँ पुरे गाँव के बच्चे जाकर रहते हैं और अपने समुदाय के नियम-कानून के साथ अन्य चीजों को सीखते हैं।

सामान्यतः बच्चे दिन भर घोटुल में रहते हैं और रात्रि के समय अपने-अपने घर चले जाते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वे रात भर वहीँ रुकते हैं और विभिन्न तरह के सांस्कृतिक नाच-गानों में भाग लेते हैं। इस व्यवस्था की सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। लड़के यह लड़कियां दोनों को एक साथ घोटुल में रहने की अनुमति होती है, वे एक साथ सभी चीजों को सीखते हैं और उसे अपने जीवन में उतारते हैं। इन घोटुल में बच्चों के अलावा मात्र उनके शिक्षक ही प्रवेश कर सकते हैं, बाकी अन्य लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है।

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मोतियारी और चेलिक:

इन आदिवासी समुदाय के बच्चे जब 10 वर्ष के हो जाते हैं तो उन्हें घोटुल में जाने की अनुमति दे दी जाती है। घोटुल में रहने वाली लड़कियों को ‘मोतियारी’ और लड़कों को ‘चेलिक’ कहा जाता हैं। इन घोटुल में लड़के और लड़कियों में से एक-एक को अपने समूह का मुखिया भी बनाया जाता है। लड़कियों के मुखिया को ‘बेलोसा’ कहा जाता है जबकि लड़कों के मुखिया को ‘सरदार’ कहा जाता है।

जीवन साथी का चुनाव:

घोटुल, इन समुदाय में जीवन साथी का चुनाव करने में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होते हैं। यहाँ रहने वाले लड़के और लड़कियां घोटुल से अपने मनपसंद साथी के साथ विवाह योग में बंध सकते है। हालाँकि इसके लिए भी कुछ तौर-तरीके अपनाने पड़ते हैं। जब घोटुल में रहने वाला कोई लड़का विवाह योग्य हो जाता है तो उसे परंपरा अनुसार बांस की एक कंघी बनानी होती है। वह लड़का यह कंघी बनाने में अपनी सारे गुण और सारी शक्ति लगा देता है। वह कोशिश कर बहुत ही खूबसूरत कंघी बनाने का प्रयास करता और कंघी बनने के बाद उसे घोटुल में ले जाकर रख देता है।

अब यदि कोई लड़की उसे चाहती है तो उसके कंघी को चुराकर अपने घर ले जाती है और तैयार होकर अपने बालों में उस कंघी को लगाकर घूमती है जिसे देखकर यह अंदाजा लग जाता है कि फलां लड़की फलां लड़के को चाहती है और बाद में उन दोनों की शादी करवा दी जाती है। अब यह वैसे शिक्षित भारतीय लोगों के मुंह पर यह एक जोर का तमाचा है जिन्हे लगता है कि लड़की या लड़के की शादी उसके मनपसंद के लड़की या लड़के से करवाने से उनके सम्मान को ठेस पहुँच सकता है। जहाँ शिक्षित भारतीय समाज में शादी-विवाह के लिए जाति-धर्म ही सबसे बड़ा निर्णयाक पहलू होता हैं वहीँ इन आदिवासी समुदाय में आपसी प्रेम और एक दूसरे को समझने की व्यवस्था को अधिक महत्व दिया जाता है।

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घोटुल प्रथा के जन्मदाता:

इस प्रथा को प्रारम्भ करने में सबसे बड़ा योगदान लिंगो देव का है। लिंगो देव को गोंड समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता के रूप में पूजते हैं। जब लिंगो देव ने देखा कि गोंड समुदाय में बच्चों के शिक्षा ग्रहण करने का कोई माध्यम उपलब्ध नहीं है तो उन्होंने काफी विचार-मंथन के उपरांत गाँवों के बाहर झोपड़ियों का निर्माण कर घोटुल व्यवस्था को शुरू किया और धीरे-धीरे यह व्यवस्था पुरे समाज में प्रचलित हो गई।

घोटुल व्यवस्था की वर्तमान स्थिति:

वर्तमान समय में घोटुल व्यवस्था का रूप बदल गया है। अब लोग अपने बच्चों को यहाँ बहुत कम भेजते हैं। वर्तमान समय में इस व्यवस्था को शोषण के लिए भी उपयोग किया जाने लगा है। माओवादी भी इसका विरोध करते हैं और लोगों को घोटुल में अपने बच्चों को ना भेजने की हिदायत देते हैं। धीरे-धीरे अब इसका रूप बदल गया है। दुनिया में हो रहे सामाजिक सुधार ने इसे भी आधुनिक बनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। घोटुल में आधुनिकता का विकास हो बहुत अच्छी बात है लेकिन वहां अन्य शिक्षित समाज के हीन विचारों का विकास वहां ना हो घोटुल के लिए यही ज्यादा बेहतर होगा।  

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