भारतीय लोगों को भक्तिमय धार में बहा देने वाले महान फिल्म प्रोड्यूसर, अभिनेता और ‘टी-सीरीज म्यूजिक लेबल’ के संस्थापक गुलशन कुमार दुआ का जन्म 5 मई 1956 को देश की राजधानी नई दिल्ली में हुआ था। वैसे तो दुनिया इन्हे महान सिंगर के रूप में जानती है लेकिन मैं दुनिया के इस भ्रम को तोड़ते हुए यह बताना चाहूंगा कि वे एक बिज़नेस मैन और फिल्म प्रोड्यूसर थे ना कि सिंगर।
फल जूस की दुकान से बड़ा कैसेट सेलर:
गुलशन कुमार जिनका वास्तविक नाम गुलशन कुमार दुआ है अपने पिता के साथ दरयागंज, दिल्ली में एक जूस दुकान चलाते थे। वह बचपन से ही अपने पिता के काम में मदद करते थे। शुरू-शुरू में गुलशन कुमार का संगीत की दुनिया से कोई सम्बन्ध नहीं था। वह अपने परंपरागत कार्य में ही लगे थे लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने फिल्मों के गानों के नकली कैसेट बनाने शुरू कर दिए जिसे कि पायरेसी कहा जाता है। ये अलग बात है कि पायरेसी के खिलाफ मौजूदा कानून की तरह कड़े कानून उस समय बने नहीं थे।
दिल्ली से बम्बई का सफर:
जब गुलशन कुमार ने इस बिज़नेस से अच्छा-खासा पैसा बना लिया तो वे बम्बई चले गए और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपना पैर फैलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अपने कुशल नेतृत्व और दुनिया की जरुरत की समझ के बल पर उन्होंने अपना बड़ा नाम कर लिया। उन्होंने देखा कि भारत में लोगों को पौराणिक दोहे तो पसंद हैं लेकिन बहुत से लोग पढ़े-लिखे नहीं है और बहुत से लोग अब बहुत बूढ़े हो चुकें है इसलिए उन्हें दोहे पढ़ने में दिक्कत हो रही है तो गुलशन कुमार ने इसका निवारण निकालते हुए पौराणिक दोहों को रिकॉर्ड करवाकर कैसेट का रूप दे दिया और खूब बिज़नेस बढ़ाया। उन्होंने देखा कि बहुत से लोग आर्थिक परिस्थिति अच्छी ना होने के कारण धार्मिक स्थलों का दर्शन नहीं कर पाते हैं। अतः उन्होंने देश के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों का वीडियो कैसेट बनाकर मार्केट में खूब बेचा।
गुलशन कुमार का फ़िल्मी सफर।
गुलशन कुमार अपने समय के बड़े फिल्म प्रोड्यूसर थे। उनके प्रोडक्शन हाउस ‘टी-सीरीज द्वारा सबसे पहली बार ‘लाल दुपट्टा मल-मल का’ फिल्म को प्रोड्यूस किया गया। इसके अलावा ‘टी-सीरीज’ द्वारा आशिकी, बहार आने तक, आई मिलन की रात, बेवफा सनम, जीना तेरी गली में, सूर्यपुत्र शनिदेव, चारधाम, सत्यनारायण की व्रत कथा इत्यादि फिल्मों का प्रोडक्शन किया गया। गुलशन कुमार फिल्म प्रोड्यूसर के साथ-साथ एक बड़े अभिनेता भी थे। उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय कर उन्हें जीवंत बनाया है।
गुलशन कुमार की हत्या:
गुलशन कुमार की बढ़ती प्रसिद्धि और कद के कारण उनके दुश्मनों की संख्या भी दिनों-दिन बढ़ती गई और अंततः 12 अगस्त 1997 को उनकी हत्या कर दी गई। ऐसा कहा जाता है कि उनकी हत्या की सुपारी एक बड़े म्यूजिक डायरेक्टर ने मुंबई के डी-कंपनी को दी थी जिनके द्वारा मौका देखकर गुलशन कुमार की हत्या कर दी गई। गुलशन कुमार रोज की तरह 12 अगस्त 1997 को अँधेरी स्थित शिव मंदिर पूजा करने गए थे। उस दिन उनका बॉडीगॉर्ड तबियत ख़राब होने के कारण उनके साथ नहीं था।
इस मौके का लाभ उठाते हुए डी-कंपनी के दो शूटर रउफ और अब्दुल राशिद ने उन पर लगातार गोलिया बरसाते हुए उनकी हत्या कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा कहा जाता है कि गुलशन कुमार ने भागकर वहां की झुग्गियों में शरण लेने का प्रयास भी किया लेकिन लोगों ने अपने-अपने दरवाजे बंद कर लिए।
हत्या के उपरांत:
गुलशन कुमार की हत्या के उपरांत म्यूजिक डायरेक्टर नदीम सैफी जो कि नदीम-श्रवण जोड़ी में से एक हैं पर केस किया गया लेकिन वह देश से भागकर बाहर चला गया। उसके ऊपर यूके की कोर्ट में भी केस चलाया गया लेकिन पर्याप्त सबूत ना होने के कारण वह बरी हो गया जबकि शूटर रउफ को आजीवन कारावास की सजा दे दी गई। अंततः उनके हत्यारे ये साबित करने में कामयाब हो गए कि डी-कंपनी द्वारा उनसे फिरौती की मांग गई थी जिसको देने से मना करने पर डी-कंपनी ने उनकी हत्या करवा दी।
गुलशन कुमार की बायोपिक:
गुलशन कुमार के बेटे भूषण कुमार जो कि अब टी-सीरीज के मालिक है द्वारा अपने पिता की बायोपिक बनाने का 2017 एलान किया था जो कि अभी भी ठण्डे बस्ते में है। इस बायोपिक को ‘मोगुल’ नाम से बनाया जायेगा।