Pranab Mukherjee (Photo Credit: Wikipedia) |
भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन 31 अगस्त 2020 को एक लंबे बीमारी के बाद हो गया। प्रणब मुखर्जी बेहद शांत स्वभाव के सरल और मृदुल व्यक्ति थे। उनके पूरे राजनीतिक जीवन काल में बहुत अधिक विवाद नहीं रहा है। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने पक्ष और विपक्ष दोनो को समान भाव से देखा और एक उच्च सामंजस्य बनाकर रखा।
प्रणब मुखर्जी को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी का है। इंदिरा ने प्रणब के प्रतिभा से प्रभावित होकर 1969 में उन्हें राज्य सभा भेजा। उसके बाद प्रणब मुखर्जी 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्य सभा सदस्य बने। प्रणब मुखर्जी 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य बने।
क्यूं बनाई प्रणब मुखर्जी ने अलग पार्टी?
बात इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चा होने लगी कि अब प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इस मुद्दे पर बातचीत के लिए राजीव गांधी ने सबसे राय ली कि अगले प्रधानमंत्री को चुनने की क्या प्रक्रिया अपनाई जाए। कहा जाता है कि प्रणब ने अगले प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद अपनाई गई वरिष्ठता के नियम का जिक्र किया अर्थात जो वरिष्ठ नेता हो उसे प्रधानमंत्री बना दिया जाय। प्रणब के इस राय का दूसरा मतलब निकाला गया कि प्रणब ही सबसे वरिष्ठ नेता हैं इसीलिए वह इस प्रक्रिया को अपनाकर स्वयं प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना चाहते हैं। इसके उपरांत राजीव गांधी स्वयं प्रधानमंत्री बने और धीरे-धीरे प्रणब मुखर्जी को पार्टी के मुख्यधारा से किनारे कर दिया गया। जिस प्रणब का इंदिरा गांधी सरकार में महत्व दूसरे स्थान पर था उनका महत्व अब कुछ नहीं रहा।
प्रणब मुखर्जी की नई पार्टी “राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस”
अपने साथ हुए भेदभाव के उपरांत प्रणब मुखर्जी ने 1986 में अपनी एक नई पार्टी “राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस” का गठन किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग हो गए। इस पार्टी के गठन के बाद 1989 में राजीव गांधी से बातचीत के बाद प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी का विलय वापस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में कर लिया।
प्रधानमंत्री बनने का सपना बाकी रह गया!
प्रणब मुखर्जी, भारत के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किए लेकिन भारत के प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना अधूरा रह गया। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने यह बयान जारी करवा रखा था कि उनके गैरहाजिरी में मंत्रिमंडल की अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी ही करेंगे। इंदिरा काल में प्रणब मुखर्जी का इतना अधिक महत्व होने के बाद भी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह प्रधानमंत्री बनने से चूक गए और इंदिरा गाँधी के पुत्र राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री बने। फिर दूसरी बार जब 2004 में यूपीए शासन में आई तो सोनिया गांधी के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रणब मुखर्जी ही सबसे योग्य उम्मीद्वार थे लेकिन पार्टी द्वारा उनसे जूनियर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया। तीसरी बार जब यूपीए 2009 में फिर शासन में आई तो फिर से प्रणब को यह मौका नहीं मिला और उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया। कहा जाता है कि एक बार किसी सभा में प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि देश में बहुत से प्रधानमंत्री आएंगे जायेंगे लेकिन पीएम (प्रणब मुखर्जी) मैं ही रहूँगा।