अरुणाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक वातावरण और खूबसूरती के साथ-साथ राज्य में मनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे त्योहारों के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। आज इस लेख में हम अरुणाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों के बारे में बात करेंगें ।
1- लोसर (Losar):
अरुणाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में यह सबसे प्रमुख त्योहार है। वैसे तो लोसर त्योहार का सम्बन्ध मुख्यतः तिब्बत से है तथा तिब्बती नए वर्ष को ‘लोसर’ के नाम से ही जाना जाता है। लोसर को तिब्बती कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रिगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार प्रत्येक वर्ष फ़रवरी-मार्च महीने में मनाया जाता है। यही कारण है कि तिब्बती मूल तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के साथ-साथ नेपाल, तिब्बत, भूटान में भी मनाया जाता है।
यह त्योहार अरुणाचल प्रदेश के मोनपा, मेम्बा, खाम्बा, नाह सहित अनेक जनजातीय समूहों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन तरह-तरह के पारम्परिक पकवान बनाए जाते हैं। लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे का अपने घर पर स्वागत करते हैं, तरह-तरह के गीत गाए जाते हैं। इस दिन बौद्ध मठों को भी रंग-बिरंगे झंडों से सजाया जाता है। यह त्योहार अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ लद्दाख, सिक्किम, किन्नौर, स्पीति सहित अनेक हिमालयी क्षेत्रों में मनाया जाता है।
2- मोपिन त्योहार (Mopin Festival):
मोपिन अथवा मूपिन त्योहार को मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश के गालो जनजातीय समूहों द्वारा मनाया जाता है। गालो जनजाति के लोग डोनी पोलो (Donyi- Polo) नामक धर्म का अनुपालन करते हैं। मोपिन त्योहार अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी तथा पश्चिमी सिआंग जिलों में ही मनाया जाता है। यह गालो जनजाति के लुकी महीने में मनाया जाता है जो कि ग्रिगेरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च से अप्रैल महीने में पड़ता है।
यह एक फसल से सम्बंधित त्योहार है। इस त्योहार में मोपिन एने नामक देवी की पूजा की जाती है और ऐसा मत है कि यह देवी सम्पन्नता लातीं हैं। इस दिन सभी लोग अधिकतर सफ़ेद कपड़े पहनकर तैयार होते हैं। परम्परात रूप से विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किये जाते हैं जिसमे अपुंग नामक पेय पदार्थ भी होता है जिसे कि बांस से बने प्यालों में पिया जाता है। खाने में चावल के विभिन्न प्रकार के भोज तैयार किये जाते हैं। मोपिन त्योहार के दिन गालो जनजातीय समूहों द्वारा पॉपीर नामक नृत्य किया जाता है।
इस त्योहार के दिन अरुणाचल प्रदेश में पाई जाने वाली विशेष प्रकार की गाय की बलि भी दी जाती है। गाय की बलि के बाद लोग उसके खून को अपने घर लेकर जाते हैं जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
3- सोलुंग त्योहार (Solung Festival):
अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख त्योहारों में सोलुंग त्योहार भी एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश के ‘आदि’ जनजातीय समूह द्वारा ही मनाया जाता है। सोलुंग त्योहार अरुणाचल प्रदेश के सियांग और दिबांग जिलों में ही मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्यतः फसलों से सम्बंधित है अर्थात फसलों के बुवाई के उपरांत अगस्त से सितम्बर महीने में ही मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे अगस्त के आखिरी सप्ताह में तथा कुछ क्षेत्रों में सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है।
इस त्योहार को तीन चरणों में मनाया जाता है जिन्हे सोपि-एक्पी (Sopi-Ekpi), बिन्नायत (Binnayat), तथा इकोप (Ekop) नामों से जाना जाता है। प्रथम चरण में गायों तथा सूअरों की बलि दी जाती है। द्वितीय चरण में फसलों की देवी काइन नाने (Kine Nane) की पूजा-अर्चना की जाती है। सोलुंग त्योहार के तृतीय चरण में दुष्ट आत्माओं से रक्षा हेतु पूजा-अर्चना की जाती है।
यह त्योहार अरुणाचल प्रदेश के अत्यंत प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्योहार के अंत में निबो और अबोतानी की कहानियां सुनाई जाती है।
4- ज़ायरो संगीत उत्सव (Ziro Music Festival):
ज़ायरो संगीत फेस्टिवल अरुणाचल प्रदेश के सबसे बड़े म्यूजिक फेस्टिवल के रूप में प्रसिद्ध है। इस उत्सव का आयोजन अरुणाचल प्रदेश के ज़ायरो घाटी में प्रत्येक वर्ष किया जाता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ देश-दुनिया के बड़े म्यूजिक आइकॉन पहुँचते हैं और ज़ायरों घाटी की सुंदरता को अपने आवाज से सवांरते हैं।
इस फेस्टिवल में स्थानीय कलाकारों की मदद से बांस का प्रयोग कर परफॉरमेंस स्टेज को बनाया जाता है। यहाँ पर दो स्टेज तैयार किये जाते हैं जिनमे एक स्टेज का नाम डोनी अर्थात सूरज तथा दूसरे स्टेज का नाम पोलो अर्थात चाँद होता है। इस त्योहार का संचालन और आयोजन अपातानी समुदाय के लोगों द्वारा ही किया जाता है।
इस फेस्टिवल में शामिल होने के लिए ऑनलाइन टिकट बेचे जाते हैं तथा यहाँ आने वाले टूरिस्ट्स से उम्मीद की जाती है कि वह अपने पीछे कोई भी वेस्ट मटेरियल ना छोड़े।
5- ड्री त्योहार (Dree Festival):
ड्री त्योहार अरुणाचल प्रदेश के अनेक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश के अपातानी समुदाय के लोगों के द्वारा मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष 5-7 जुलाई के मध्य इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार में अपातानी समुदाय के लोग अपने देवताओं तामु, हरनियांग, मेति और दानई की पूजा-अर्चना करते हैं।
यह त्योहार मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में मनाया जाता है। इस अनोखे त्योहार में अपातानी समुदाय के लोग अपने देवताओं को खुश करने हेतु अंडे, मुर्गियों सहित अन्य जानवरों की बलि चढ़ाते हैं। दमिन्गदा (Damingda) नामक परंपरागत गीत भी गाये जाते हैं। इस दिन चावल से बने तरह-तरह के बियर अपने रिश्तेदारों को पीने के लिए दिए जाते हैं।
हालाँकि समय के साथ-साथ इस त्योहार के मनाने के रंगरूप में काफी परिवर्तन आया है फिर भी यह अरुणाचल प्रदेश का सबसे एक अनोखा और महत्वपूर्ण त्योहार है।
6- चालो-लोकू त्योहार (Chalo-Loku Festival):
अन्य त्योहारों के तरह ही चालो-लोकू त्योहार अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष अक्टूबर से नवंबर माह में मनाया जाता है। चालो-लोकू त्योहार अरुणाचल प्रदेश में फसलों से जुड़ा हुआ त्योहार है और अक्टूबर-नवंबर माह में धान के फसल के कटाई-गुड़ाई होने के बाद तथा झूम खेती के शुरू होने से पहले मनाया जाता है।
इस त्योहार का नाम तीन शब्दों चा, लो, और लोकू से बना है- चा का अर्थ धान, लो का अर्थ मौसम तथा लोकू का अर्थ त्योहार होता है। चालो-लोकू तीन दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। इस त्योहार के पहले दिन को फामलाम्जा (Phamlamja), दूसरे दिन को चमकात्जा (Chamkatja) तथा तीसरे दिन को थानलांगजा (Thanlangja) के नाम से जाना जाता है।
इस त्योहार का सबसे बड़ा आकर्षण चावल से बनने वाला बियर होता है जो विशेषतः इस त्योहार के लिए तैयार किया जाता है। त्योहार के पहले दिन भैंसों तथा सूअरों की बलि दी जाती है तथा उनके मांस को एक-दूसरे के साथ बांटा जाता है। चालो-लोकू के दूसरे दिन और तीसरे दिन सभी एक-दूसरे से मिलते हैं और खाने-पीने के साथ-साथ परम्परागत नृत्य का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह अरुणाचल प्रदेश में चालो-लोकू त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।
7- बूरी बूट त्योहार (Boori Boot Festival):
बूरी बूट त्योहार भी अरुणाचल प्रदेश का एक अत्यंत प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष फ़रवरी माह में मनाया जाता है। इस त्योहार का अर्थ एक साथ इकट्ठा होकर वसंत ऋतु का स्वागत करना है। अतः सफलतापूर्वक फसल प्राप्ति तथा वसंत ऋतु के आगमन पर इस त्योहार को अरुणाचल प्रदेश के निशि जनजाति (Nyishi Community) के द्वारा मनाया जाता है। यह जनजाति मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश के कुरूंग कुमे, ईस्ट कामेंग, वेस्ट कामेंग, पापुम पारे सहित अन्य जिलों में पाई जाती है।
इस त्योहार के दिन निशि जनजाति (Nyishi Community) की महिलाएं बांस तथा अन्य चीजों से बने परम्परागत पोशाक धारण करतीं हैं तथा बच्चे-बूढ़े, नौजवान-लड़के-लड़कियां सभी एक साथ परंपरागत नृत्य भी करते हैं। इस त्योहार के माध्यम से जनजाति के बड़े-बुजुर्ग अपनी परम्परा को अपने नए पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा पाते हैं।
8- सांगकेन त्योहार (Sangken Festival):
अरुणाचल प्रदेश में नव-वर्ष के स्वागत में इस त्योहार को मनाया जाता है। इस त्योहार को सांगकेन अथवा सांकेन त्योहार के नाम से जाना जाता है। सांगकेन त्योहार प्रत्येक वर्ष के अप्रैल माह में मनाया जाता है। इस त्योहार का सम्बन्ध मुख्यतः बौद्ध धर्म से है परन्तु बौद्ध धर्म के अलावा भी अरुणाचल प्रदेश के दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा भी इस त्योहार को मनाया जाता है।
यह तीन दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण एक-दूसरे के ऊपर पानी डालकर मनाए जाने की प्रथा का है। सांगकेन त्योहार के अवसर पर लोग सभी बुरे कार्यों जैसे मदिरा पान, जुआ, जीव हत्या, पेड़ काटना इत्यादि से परहेज करते हैं। इस त्योहार के अवसर पर भगवान् बुद्ध की प्रतिमा को मंदिर से बाहर निकाल कर उसे पवित्र जल से स्नान कराया जाता है तथा त्योहार के आखिरी दिन पुनः उसे मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।
यह त्योहार नए वर्ष का स्वागत करता है तथा पुराने वर्ष को ख़ुशी-ख़ुशी विदा कर देता है।
9- न्योकुम त्योहार (Nyokum Festival):
न्योकुम त्योहार भी अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख त्योहारों में मुख्य स्थान रखता है। यह त्योहार भी अरुणाचल प्रदेश के निशि जनजाति (Nyishi Tribe) द्वारा मनाया जाता है। न्योकुम, दो शब्दों न्योक और कुम से मिलकर बना बना है जिसमे न्योक का अर्थ धरती तथा कुम का अर्थ समूह से है। अर्थात इस त्योहार में ब्रह्माण्ड के सभी देवी-देवता न्योकुम देवी के साथ मिलकर एक विशेष समय पर एक विशेष स्थान पर इकठ्ठा होते हैं। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष फ़रवरी माह में मनाया जाता है।
न्योकुम त्योहार में एक विशेष पूजा स्थल को बांस से बनाया जाता है जिसे युगांग कहा जाता है। युगांग के पास ही विभिन्न पशुओं जैसे गाय, बकरी इत्यादि की बलि दी जाती है। लोग अपने पौराणिक पोशाकों को धारण करते हैं, नाच-गाने का आयोजन किया जाता है तथा चावल और बाजरे का बियर लोगों को परोसा जाता है।
10- पांगसाउ विंटर फेस्टिवल (Pangsau Winter Festival):
अरुणाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले त्योहारों में इस त्योहार का भी अहम् स्थान है। हालाँकि यह अरुणाचल प्रदेश का कोई परम्परागत त्योहार नहीं है लेकिन फिर भी इस त्योहार को देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी यहाँ पहुँचते हैं। यह त्योहार अरुणाचल प्रदेश के नामपोंग में प्रत्येक वर्ष जनवरी माह के तीसरे सप्ताह में मनाया जाता है। वर्ष 2007 से प्रत्येक वर्ष इस त्योहार को मनाया जा रहा है।
यह त्योहार भारत और म्यांमार के आपसी सहयोग से एक साथ मनाया जाता है। इस त्योहार में विभिन्न स्थानीय समुदायों के लोग इकठ्ठा होते हैं। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के वर्कशॉप के आयोजन भी किये जाते हैं तथा लोगों को पर्यावरण के प्रति भी सजग रहने के उपाय सुझाए जाते हैं। पांगसाउ विंटर फेस्टिवल में स्थानीय कलाओं के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों जैसे असम इत्यादि के कलाओं का भी प्रदर्शन किया जाता है।
इस प्रकार हमने देखा कि भारत के सबसे पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में वर्ष भर विभिन्न जनजातियों द्वारा विभिन्न प्रकार के त्योहारों को मनाया जाता है जो कि देश के अन्य राज्यों के निवासियों के लिए अत्यंत दर्शनीय साबित हो सकता है। इन त्योहारों के माध्यम से प्रदेश के लोग अपनी परम्परा और संस्कृति को संजोए हुए हैं और दुनिया में अपनी विशेष कला और संस्कृति से अलग पहचान भी कायम किये हुए हैं।
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