Home दार्शनिक स्थल अक्षयवट आश्रम (Akshyavat Ashram): प्राचीन बरगद का पेड़।

अक्षयवट आश्रम (Akshyavat Ashram): प्राचीन बरगद का पेड़।

अक्षयवट

हमारी पृथ्वी अनेक रहस्यों से भरी-पड़ी हैं। पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर बहुत ही असामान्य चीजें घटित होती रहती हैं और भूतकाल में घटित हुई भी हैं जिनके बारे में जब हमे पता चलता है तो हमे आसानी से विश्वास नही हो पाता कि ऐसा भी संभव होगा। इसी क्रम में हमारे आस-पास दर्शनीय और चमत्कारिक गुणों से भरे अनेक स्थल विद्यमान है परन्तु कई बार ऐसा होता है कि हमे उनके बारे में बिलकुल भी पता नहीं होता है और जब हमे पता चलता है तो हम उसके बारे में जानकार आश्चर्य में पड़ जाते हैं तथा सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर यह संभव कैसे हुआ है। आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसे ही एक दर्शनीय और चमत्कारिक तथ्यों से परिपूर्ण एक धार्मिक स्थल के बारे में जो अत्यंत ही प्राचीन और ऐतिहासिक है लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी उसके आस-पास के अधिकतर लोगों को उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है।

अक्षयवट आश्रम (Akshyavat Ashram):

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में प्रकृति के गोद में आम के बड़े-बड़े बगीचों के बीचों-बीच स्थित हैं अक्षयवट आश्रम. अक्षयवट आश्रम के पूर्व दिशा में गोमती नदी प्रवाहित होती है. अक्षयवट आश्रम एक अत्यंत ही ऐतिहासिक और प्राचीन आश्रम है। वैसे तो इस आश्रम में देखने लिए शांति-सुकून, एक दो मंदिर और 10-15 श्रधालुओं के अलावा बहुत कुछ नही है फिर भी यह आश्रम अपने आप में लोगों के लिए अत्यंत आकर्षण का केंद्र है. अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ऐसा क्या है इस आश्रम में.

अभी-अभी आपके मन में उठे जिज्ञासा को शांत करने हेतु मैं बताना चाहूँगा कि इस आश्रम में एक प्राचीन बरगद का वृक्ष स्थित है जो अकेले वर्ष भर हजारों-लाखों श्रधालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. दरअसल यह बरगद का वृक्ष इतना प्राचीन है कि इसकी आयु के बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगा पाना भी बहुत कठिन कार्य है. स्थानीय निवासियों के अनुसार इस बरगद की आयु करीब 250 से 500 वर्ष के आस-पास है जबकि आश्रम के मुख्य पुजारी के सहायक के अनुसार इसकी आयु 1000 वर्ष तक है। आश्रम में सेवारत सहायक महोदय के अनुसार इसकी लम्बी आयु के कारण ही इसे अक्षयवट कहा गया है और इसी अक्षयवट के नाम के आधार पर इस आश्रम का नाम ‘अक्षयवट आश्रम’ रखा गया है.

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हरबंश जी महाराज:

हरबंश महराज

इस आश्रम के इतिहास के बारे में पूछने पर आश्रम के सहायक महोदय ने बताया कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक महान तपस्वी संत तपस्या करते थे जिन्हें हरबंश जी महाराज के नाम से जाना जाता था. हरबंश जी महाराज अत्यंत ही तपस्वी सन्यासी थे और हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। सहायक महोदय के अनुसार उनमे महान दैवीय शक्तियों का वास था जिससे इस क्षेत्र के लोगों को उनमे अत्यंत विश्वास और श्रद्धा थी। सहायक महोदय के अनुसार जब हरबंश महराज इस स्थान पर तपस्या कर रहे थे उस समय यह स्थान एक जंगल के रूप में था और यहाँ अत्यंत खूंखार जंगली जानवर भी रहते थे लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियां भी हरबंश जी महाराज की तपस्या में बाधा नही पहुंचा सकीं.

आश्रम के सहायक महोदय ने आगे बताया कि जब हरबंश जी महाराज तपस्या कर रहे थे उस दौरान प्रेत-राज और भूत-राज नामक दो असुर प्रेतात्मा अक्सर उनकी तपस्या में विघ्न डालने का प्रयास करते रहते थे। एक दिन महाराज जी ने मन्त्र पढ़कर उनके ऊपर जल का छींटा मार दिया जिससे वे दोनों दो अलग-अलग स्थानों पर हमेशा के लिए बंध गए। आज सैकड़ों वर्ष बीतने के बावजूद भी उन दोनों को जिस स्थान पर महाराज जी ने बांधा था उसी उसी स्थान पर उनकी दो छोटे-छोटे मूर्तियों का निर्माण करवाया गया है।

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अक्षयवट कैसे उत्त्पन्न हुआ:

सहायक महोदय से जब अक्षयवट के उत्पत्ति के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि कई वर्षों की कठिन तपस्या के उपरांत एक दिन ऐसा भी आया जब हरबंश जी महराज ने समाधि ले ली. महाराज जी ने जिस पवित्र स्थान पर समाधि ली थी उसी स्थान पर एक पवित्र वट वृक्ष (बरगद) उत्पन्न हुआ. यह वट वृक्ष धीरे-धीरे बड़ा हुआ चूंकि यह महाराज जी के समाधि लिए हुए स्थान पर उत्पन्न हुआ था तो लोग इसकी पूजा करने लगे और आगे चलकर यही वट वृक्ष अक्षयवट के नाम से जाना जाने लगा.

इस वट वृक्ष की लताएँ काफी बड़े क्षेत्रफल में फैली हुई हैं. सैकड़ों वर्षों में इस वृक्ष की लताएँ फ़ैल-फ़ैल कर करीब 5 बीघे से अधिक क्षेत्रफल में एक बड़े वट वृक्ष का आकार धारण कर ली हैं. यदि इन्हें पहली बार देखो तो ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसे सैकड़ों वट वृक्ष एक ही स्थान पर उगे हैं लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलता है कि एक ही वट वृक्ष सैकड़ों वृक्षों के बराबर क्षेत्रफल में फैला है और यही कारण है कि यह वट वृक्ष हजारों-लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

पर्यटन के दृष्टि से इसका महत्व:

श्रद्धालुं

यद्यपि कि अक्षयवट आश्रम लखनऊ शहर से दूर एक ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित है फिर भी यह पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक दिन सैकड़ों-हजारों की संख्या में श्रद्धालुं दूर-दूर से यहाँ पहुँचते हैं। आश्रम के सहायक महोदय के अनुसार वट सावित्री व्रत के दौरान आस-पास के क्षेत्रों के साथ-साथ लखनऊ शहर से असंख्य लोगों की भीड़ यहाँ पहुँचती है और इस वृक्ष के अलग-अलग शाखाओं के पास बैठकर महिलाएं वट-सावित्री की पूजा करती हैं। चूंकि यह आश्रम अत्यंत प्राचीन है फिर भी बहुत से लोगों को इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नही थी लेकिन सोशल मीडिया के कारण बड़ी संख्या में लोगों को इसके बारे में जानकारी मिल रही है और लोग इस दिव्य और प्राचीन स्थल का दर्शन करने पहुँचने लगे हैं.

अन्य दर्शनीय स्थल:

यदि आप अक्षयवट आश्रम के दर्शन हेतु पहुँचते हैं तो इसके साथ ही साथ आपको यहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में गोमती नदी के पार स्थित चन्द्रिका देवी मंदिर के दर्शन का लाभ भी मिलेगा. चन्द्रिका देवी मंदिर भी पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थल है। चन्द्रिका देवी मंदिर और अक्षयवट आश्रम के बीच स्थित गोमती नदी भी पर्यटन और नौका-विहार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं और प्रकृति के आवरण में कुछ समय बिताना चाहते हैं तो यह स्थल आपके लिए अत्यंत ही माकूल साबित हो सकता है.

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